Sunday, 5 January 2014

Knowledge I

• Jannat Chahte Ho To Ye 6 Kaam Kar Lo
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Hazrat Muhammad (Sal'lal'lahu Alaihe Wasallam) ne Famraya :
Jiska matlab ye hai ki -
"Tum apni taraf se Mujhe chhe (6) baaton ki zamanat de do, mein tumhe
jannat ki zamant deta hoon
(1) Jab Baat karo to sach bolo.
(2) Jab Wadaa karo to pura karo.
(3) Jab Tumhare paas koi Amanat rakhe to uske maangne par wapas do.
(4) Apni Sharmgaahon ki Hifaazat karo.
(matlab zina/adultory se bacho)
(5) Apni Aankhon ko nicha rakho
(Matlab parai aurao/ladkiyo ko mat dekho)
(6) Apne Haathon ko roke raho
(Matlab kisi par zulm mat karo)

{Ibn Habban : 271 ~ Ahmad : 5/323 ~ Haakim : 4/358’359}

Allah humko in 6 baato par amal karne ki tofik ata kare. Aameen.


• Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasllam) ke kuch hadees (Part 2)
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1. Jab Acche kaam Tumko Khush Kare aur Gunaah Tumko Gamgeen (dukhi)
Kare To Samajh Lo Ke Tum sacche Muslim Ho

2. Jo Dusro Par Raham Nahi Karta Allah Us Par Raham Nahi Karta

3. Jis Bartan Ko Dhanka Na Gaya Ho Us Ka Paani Mat Piyo


• Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasllam) ke kuch hadees
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Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasllam) ne farmaya jiska matlab ye hai ki -

1) Insaaf karne mein laga ek pal Barso Ki Ibadat Se badhkar hai

2) Jo insan Sona or Chandi Ke Bartan Me Khata He Allah Us Ke Pet Me
Jahannam Ki Aag Bhar Dega
(kyonki mere hisab se aisa karna fizul kharchi hai aur ghamand ki nishani hai)

3) Jahannami Log Khud Pasand, Khud Parast, Mutakabbir or Lalchi Hote He
(mat aisa insan jo sirf khud ke baare mein sochta ho aur dusro ki
fikar na karta ho)

4) Jo Baat Tum Ko Shak Me Dale Use Chor Do
(Matlab agar tumko kisi cheez ke haram ya halal hone ka shak hota ho
to us kaam ko mat karo)

5) Jis Ne Meri Qabar (Roza-E-Mubarak) Ki Ziyarat Ki Us Par Meri
Shafa'at Wajib Ho Gai
(Matlab jisne Hazrat Muhammad (sallalahu alyhiwasallam) ke
roza-e-mubarak ki ziyarat ki, aap uski gunaho se maafi ke liye Allah
se sifarish karenge)



• Musalman mein sabse garib kon hoga.
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Hazrat Muhammad (Sallallaho Alayhi Wasllam) Ne sahaba (radi allahu
anhu) se Farmaya Ke -
Kya Tum Jaante Ho Ke garib kon He???? To Sahaba (radi allahu anhu) Ne
Arz Kiya Ke Ham to garib Usi Ko Samjhte He Jiske Paas Maal aur paisa
nahi hai, To Aapne Farmaya Ke -
Meri Ummat Ka garib Wo Hoga Jo Qayamat Ke Din (marne ke baad jab wapas
zinda hoga tab) Bahut Si Namaze, Roze or Zakaat (donation) Wagherah
Lekar Aayega Magar Haal uska haal ye Hoga Ke usne Kisi Ko Gaali Di
Hogi, Kisi Par jhoota Ilzaam Lagaya Hoga,
Kisi Ka Maal hadap liya Hoga, bina kisi wajah ke kisi ka Khoon Bahaya
Hoga, Kisi Ko Maraa Peeta Hoga, Lihaza un insano ka aaj Badla Diyaa
Jayega aur Har wo insan Apna Badlaa Lene Aa Jayega
Uski Neikiyaan (punya) Uthaa-Uthaa Kar Di Jaane Lagengi Yahan Tak Ke
Us insan Ki Naikiyaan (punya) Sab Khatam Ho jayenge Magar Daawedaar
Baaqi Reh Jaayenge, aakhir mein Un Daawedaaro Ke Gunaah Us Par Laad
Diyaa Jayega or Phir Use Jahannam Main phenk Diyaa Jayega

- Muslim Shareef, Mishkaat Shareef

So Dosto Apni Nekiyo Ko Barbaad Mat Karo
Allah humko saare bure kaamo se bachaye.
AAMIN SUMMA AAMIN


• Haraam Ki Income
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Hazrat Muhammad (Sallallaho Alayhi Wasllam) Ne Farmaya Ke -
Haraam Rozi Khaa Kar Ibadat Karna Aisa He Jesa Ke PAANI Ya RET Par
Makaan Banana.

Matlab Haraam Khane Wale Ki Ibadat Qabool Nahi Hoti He
- Bukhari Shareef

Haram ki income mein ye sab aate hain - byaz (interest), rishwat lena,
chori se paisa kamana, Jua-satta se paisa kamana, kisi ki property ya
paisa par kabza kar lena, sharab ya is jesi koi dusri nashe ki cheez
bech kar paisa kamana, gaane-bajane se hone wali income, etc.

Allah Hame Halaal income Ata Farmaye or Haraam Se Bachne Ki Taufeeq Ata Farmaye

AAMIN SUMMA AAMIN


• इस्लाम में सुअर को गन्दा जानवर क्यों माना जाता है?
और इसको खाना क्यों हराम है?
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किसी भी जानवर को हमें बिना किसी वजह के परेशान नहीं करना चाहिए, सबको
अपने तरीके से ज़िन्दगी जीने का अधिकार है. परन्तु इस्लाम में गन्दगी को
बहुत ज्यादा ना-पसंद किया गया है, और ऐसी चीज़ों से भी दूर रहने का हुक्म
दिया गया है जो गन्दी हों. इसलिए मल-मूत्र या दूसरी किसी तरह की गन्दगी
कपड़ों पर या बदन पर लग जाएगी तो इन्सान नमाज़ नहीं पढ़ सकता और ना ही कुरान
शरीफ पढ़ सकता है जब तक वो उस गन्दगी को साफ़ ना कर दे.

सूअर को गन्दा जानवर माना गया है क्योंकि
1) वह इंसानोँ और जानवरों की गंदगी खाता है
3) सुअर के शरीर पर मल मुत्र हमेशा लगा रहता है। वह गंदगी और
किचड और गंदगी मे ही रहना पसंद करता है।
2) हाल हीं मे साइंस ने साबित किया सुअर खानो वालो को होती है 57 किस्म
की घातक बिमारियाँ

इसलिए इस्लाम में सूअर को खाना, उसको छूना मना है.

(ये पोस्ट सिर्फ इस्लाम की जानकारी देने के हिसाब से लिखा गया है, किसी
दुसरे के विचारों से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है)


• हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अल्य्ही वसल्लम) के कुछ कथन:
(जिनका मतलब ये है की) भाग- 4
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१. जहाँ पर हुकूमत करने वाले बुरे लोग होंगे और अज्ञानियों को इज़्ज़त दी
जायेगी वहाँ पर बलायें नाज़िल होगी। (आपदा आएगी)
२. इंसान की ख़ूबसूरती उसकी बात-चीत के तरीके में है।
३. एक दूसरे की तरफ़ मुहब्बत से हाथ बढ़ाओ क्योँकि इससे एक दुसरे के लिए
दिल की बुराई ख़तम होती है
४. सच कहने में, लोगों से नही डरना चाहिए।
५. अक़लमंद इंसान वह है जो दूसरों के साथ मिल जुल कर रहे।
६. मौत के वक़्त, लोग पूछते हैं कि क्या माल छोड़ा और फ़रिश्ते पूछते हैं
कि क्या अच्छे काम करके लाये
७. वह हलाल काम जिससे अल्लाह को नफ़रत है, तलाक़ है।
८. सबसे अच्छा काम, दो झगडे हुए लोगों में दोस्ती कराना है.


• हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अल्य्ही वसल्लम) के कुछ कथन:
(जिनका मतलब ये है की) भाग- 3
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१. जब तक दिल सही न होगा, ईमान सही नही हो सकता और जब तक ज़बान सही नही
होगी दिल सही नही हो सकता।
२. मेरी उम्मत के हर अक़्लमंद इंसान पर चार चीज़ें ज़रूरी हैं । इल्म
हासिल करना, उस पर अमल करना, उसकी हिफ़ाज़त करना और उसे फैलाना।
३. मोमिन (सच्चा मुस्लिम) चापलूस नही होता।
४. ताक़तवर वह नही,जिसके बाज़ू मज़बूत हों, बल्कि ताक़तवर वह है जो अपने
ग़ुस्से को काबू में कर ले.
५. सबसे अच्छा घर वह है, जिसमें कोई यतीम (अनाथ) इज़्ज़त के साथ रहता हो।
६. मरने के बाद अच्छे काम करने का दरवाज़ा बंद हो जाता है,मगर तीन चीज़े
ऐसी हैं जिनसे सवाब मिलता रहता है, सदक़-ए-जारिया (यानी ऐसा कोई काम जो
आम लोगो के फैदे के लिए कर दिया हो जैसे कुवां खुदवा दिया, झाड लगा दिए)
, किसी को ऐसा इल्म सिख दिया जो लोगों को हमेशा फ़ायदा पहुँचाता रहे और
नेक औलाद जो माँ बाप के लिए दुआ करती रहे।
७. अल्लाह की इबादत करने वाले तीन गिरोह में बाटें हैं। पहला गिरोह वह है
जो अल्लाह की इबादत डर से करता है और यह ग़ुलामों वाली इबादत है। दूसरा
गिरोह वह जो अल्लाह की इबादत इनाम के लालच में करता है और यह व्यापारी
वाली इबादत है। तीसरा गिरोह वह है जो अल्लाह की इबादत उसकी मुहब्बत में
करता है और यह इबादत आज़ाद इंसानों की इबादत है।
८. ईमान की तीन निशानियाँ हैं, खुद के पास पैसा न होते हुए भी दूसरों को
सहारा देना, दूसरों को फ़ायदा पहुँचाने के लिए अपना हक़ छोड़ देना और
इल्म वालों से इल्म हासिल करना।
९. इंसानों को उनके दोस्तों के ज़रिये पहचानों, क्योँकि हर इंसान अपने ही
सोंच के जैसे लोगों को दोस्त बनाता है।
१०. बाप पर बेटे के जो हक़ हैं उनमें से यह भी हैं कि उसका अच्छा नाम
रखे, उसे इल्म सिखाये और जब वह बालिग़ हो जाये तो उसकी शादी करे।
११. सबसे वज़नी चीज़ वो है जो (मरने के बाद) अच्छे-बुरे कामो को तोलने
वाले तराजू में रखी जायेगी वह हंसमुख स्वभाव है.


• हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अल्य्ही वसल्लम) के कुछ कथन:
(जिनका मतलब ये है की) भाग- 2
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Jo is text ko thik se read nahi kar pa rahe ho wo is poore text ko
copy karke is link par paste kare.
http://translate.google.com/#hi/en/asdfe

१) सच, से दिल को सकून मिलता है और झूट से शक व परेशानियाँ बढ़ती है।
२) मोमिन (सच्चा मुस्लिम) दूसरों से मुहब्बत करता है और दूसरे उससे
मुहब्बत करते हैं।
३. तमाम इंसान कंघें के दाँतों की तरह आपस में बराबर हैं।
४. इस्लाम की शिक्षा लेना तमाम मुसलमानों पर वाजिब है।
५. झूले (बचपन से) से कब्र तक इल्म हासिल करो। (यानी ज़िन्दगी भर इस्लाम
को सीखते रहो)
६. मोमिन की शराफ़त रात की इबादत में और उसकी इज़्ज़त दूसरों के सामने
हाथ न फैलाने में है।
७. लालच इंसान को अंधा व बहरा बना देता है।
८. परहेज़गारी (बुरे कामो से बचना) इंसान के ज़िस्म व रूह को आराम पहुँचाती है।
९. अगर कोई इंसान चालीस दिन तक सिर्फ़ अल्लाह के लिए ज़िन्दा रहे, तो
उसकी ज़बान से हिकमत (अक़ल्मंदी) के चश्मे जारी होंगे।
१०. मस्जिद के कोने में तन्हाई में बैठने से ज़्यादा अल्लाह को यह पसंद
है, कि इंसान अपने ख़ानदान के साथ रहे। (इससे ये पता चलता है की अपने
खानदान वालो से अच्छा व्यवहार करो)
११. आपका सबसे अच्छा दोस्त वह है, जो आपको आपकी बुराईयों की तरफ़ ध्यान दिलाये।


• हज़रत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अल्य्ही वसल्लम) के कुछ कथन:
(जिनका मतलब ये है की) भाग- १
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Jo is text ko thik se read kar pa rahe ho wo is poore text ko copy
karke is link par paste kare.
http://translate.google.com/#hi/en/asdfe

1. माल (पैसे) के ज़रिये सबको खुश नही किया जा सकता, मगर अच्छे अख़लाक़
(व्यवहार) के ज़रिये सबको ख़ुश रखा जा सकता है।
2. किसी की अच्छे काम के लिए किसी की मदद करना भी ऐसा ही है, जैसे उसने
वह अच्छा काम ख़ुद किया हो।
3. माँ के क़दमों के नीचे जन्नत है।
4. औरतों के साथ बुरा बर्ताव ना किया करो और अल्लाह से डरों, जो औरतों हक
है उनको पूरा करो
5. ज़िद, से बचो क्योंकि इसका आधार अज्ञानता है और इसकी वजह से शर्मिंदगी
उठानी पड़ती है।
6. सबसे बुरा इंसान वह है, जो न दूसरों की ग़लतियों को माफ़ करता हो और न
ही दूसरों की बुराई को नज़र अंदाज़ करता हो, और उससे भी बुरा इंसान वह है
जिससे दूसरे इंसान न सुकून में हो और न उससे अच्छे काम की उम्मीद रखते
हों।
७. जब तुम्हारी तारीफ़ की जाये, तो कहो, ऐ अल्लाह ! तू मुझे उससे अच्छा
बना दे जैसा ये मेरे बारे में सोचते हैं और जो यह मेरे बारे में नही
जानते उसको माफ़ कर दे और जो यह कहते हैं मुझे उसका मसऊल क़रार न दे।
८. चापलूस लोगों के मूँह पर मिट्टी मल दो। (यानी उनको मुँह न लगाओ)
९. अगर अल्लाह किसी बंदे के साथ अच्छा करना चाहता है, तो उसको इस्लाम की
समझ दे देता है
१०. सबसे बहादुर इंसान वह हैं जो दिल की चाहत को काबू में रखे
११. ख़ुश क़िस्मत हैं, वह लोग, जो दूसरों की बुराई तलाश करने के बजाये
अपनी बुराईयों की तरफ़ ध्यान देते हैं.


• Maa ko apne bacche ko Dhoodh Pilane ka sawab
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Jab bacche ko doodh pilane ka time yaani shariyat ke hisab se 2 saal
khatam ho jata hai to farishte us Maa ko khush khabri sunate hai ki
Allha ta'ala ne tujh pe jannat wajib kar dee, subhan allha!

Aur aajkal hum dekhte hain ki kuch aurate khud kha khyal rakhne ke
liye apne bacche ko dhoodh nahi pilati, aisa karna galat hai. Isliye
bacche ko 2 saal tak dhoodh pilaya jana chahiye, agar koi dusri
majburi ho to alag baat hai.


• Maa ka pyar (Zarur Padhiye)
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Ek baar Ek Budhi MAA Apne Jawaan Bete Ke Saath Ek Jagah Par Baithi
Thi, MAA Ne Ek Kabutar Ke Jhund Ki Taraf Ishara Kiya Aur Pucha, BETA
Yeh Kya Hai ? ? ? BETE Ne Jawab Diya KABUTAR. Thodi Der Baad MAA Ne
phir Puchha, Beta Yeh Kya Hai ? ? ? Bete Ne Kaha Yeh Kabutar Hai, Is
Baar Beta chaila kar Zor Se Bola Kitni Baar Kahu Ye ki Kabutar Hai,
Bete ki daant sunkar MAA Ki Aankho Se Aasu Nikal Aaye, Aur MAA Ne
Pyaar Se Uske Sar Pe Haath
Rakha Aur Kaha : "BETA Jab Tu 3 Saal Ka Tha Tab Isi Jagah Par Tune
Mujh Se Yahi Sawal Kai 2 baar nahi balki kai baar Pucha Tha,
Aur Maine Bhi har baar Tera Matha Chum Kar Tujhe pyar se Jawab Diya Tha......


Dosto, Kuch Log Apni MAA Se Kehte Hai Ki Maa Tu Kuch Nahi Samajhti,
Maa Tumhe Kuch Paata Nahi, Tumhe Aisa Nahi Karna
Chahiye, Lekin aisa kahne walo ko Yeh Baat Nahi Bhulna Chahiye Ki Unki
Maa Us time Bhi Unki Baat Samajh Jaati Thi, Jab Uski zubaan Ne Kuch
Sikha Bhi Na Tha, Sirf Apne Isharo Se Wo Unki Bhukh-pyaas Ka Andaza
Laga Laeti Thi.

KHUDA Ne Bhi MAA Ki Kya Misaal Di hai, Jannat utha kar Maa ke Kadmo me
Daal di (Matlab Maa ki mohabbat ke badle jannat de di)

Dosto, maa-baap ka Islam mein bahut bada darja hai, jis insan se uske
Maa-baap naraz hote hain unse Allah bhi naraz hota hai, isliye kabhi
bhi apne maa-baap se unchi awaz mein baat na karo, unko sakht jawab na
do, unki har baat maano (agar koi baat islam ke khilaf ho to usko mana
kiya ja sakta hai).

Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ne farmaya (jiska matlab ye
hai ki) - Agar meri maa aaj zinda hoti aur mujhe kisi kaam ke liye
awaaz deti to chahe mein Namaz padhne ke liye bhi khada ho chuka hota
to bhi mein namaz todkar apni ammi ki baat sunen chala jata.

Dosto, Jab insan bada hota hai aur khud ke bacche hote hain, tab usko
pata chalta hai ki humko bhi hamare maa-baap ne raato ko aise hi
jaag-jaag kar pala hoga. Hamare Apni khushi ko qurbaan kar apne baccho
ki khushi puri ki hogi. Sote mein agar ek baar maa humko utha de to
humko bura lag jata hai, lekin bachpan mein hamari maa baar-baar
uthkar hamare kambal ko sahi karti thi, hamare takiye ko sahi karti
thi,

Allah humko apne maa-baap ki khidmat, izzat karne wala bana de. Aameen


• Acchi Baato Ka Hukm Karte Raho aur Buri Baato Se Rokte Raho
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Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ne farmaya-
Qasam He Us Paak Zaat Ki (Allah ki) JisKe Qabze Me Meri Jaan He Tum
Acchi Baato Ka Hukum Karte Raho or Buri Baato Se Logo Ko Rokte Raho
Warna Allah Tum Par Azaab Bhej Dega Phir Tum Duwa Karoge Phir Bhi Duwa
Qabool Nahi Hogi

Ref. Tirmizi Shareef, Mishkaat Shareef


• Sacchai
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> Maa se badhkar koi wafadar nahi...

> Gareeb ka koi dost nahi.

> Log acchi seerat ko nahi acchi surat ko tarjeeh dete hai..

> Aajkal Izzat sirf paise ki hai insan ki nahi.

> Jise koi bhi jhootla nahi sakta hai ..woh hai Maut


• Kucch Acche Kaam
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1.nek logo ki sohbat (sangat) me rehna.
2.kharab logo ki sohbat se dur rehna.
3.apne gharwalo ko deen ki taalim (education) dena.
4. rishtedar k saath mil-zul k rehna.
5. 2 ladai karte huve musalman ku suleh karana.
6. yatimo (orphan) se muhabbat rakhna.
8. garibo par raham karna.
9. pyase ku paani pilana.
10. raste se kaante,patthar,gandgi ko hatana.
11 .bimaar ko dekhne jaana
12. mayyit ko nahlana

Allah hame ye sab kaam karne ki tofik ata kare
AAmeen


• Allah, insan ke kisi bhi kaam ka phal (result) uski niyat (intention)
se deta hai.
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Insan duniya mein jo bhi kaam karta hai uska sawab (punya) Allah insan
ki niyat (intention) ke hisab se deta hai. Jese koi insan Allah ko
khush karne aur sawab (punya) ke irade se koi accha kaam karta hai,
jese namaz, roza, daan/sadqa, gharibo ki madad karna etc. to Allah us
insan se khush hota hai aur uske badle usko sawab bhi deta hai.

Isi tarah agar koi insan duniya ko dikhane ke liye aur apni taarif
karwane ke liye koi kaam karta hai, jese kai logo ke saamne kisi
gharib (poor) ko paisa dena ki jo log dekh rahe hain woh taarif
karege, ya bakra eid par bada aur accha bakra is irade se laana ke
aas-padosi taarif karege, ya haj par isliye jaana ki apne naam ke aage
haaji lagwana hai aur log izzat karege, ya namaz/zakat/roza logo ko
dikhane ke liye karna ki log taarif karege.

Matlab yeh ki insan koi bhi accha kaam agar logo ko dikhane aur unki
taarif paane ke liye karta hai to Allah farmata hai ki jin logo ne
duniya ko dikhane aur unki taarif paane ke liye acche kaam kiye the
unko duniya mein taarif mil chuki isliye mere yaha koi sawab (punya)
nahi.

Isliye saare acche kaam karne ki niyat/irada sirf Allah ko dikhana,
usko khush karna aur sawab(punya) ka irada hona chahiye. Kyonki Allah
ke siwa hamare dil ki niyat/irada koi nahi jaanta aur Allah uske hisab
se hi humko sawab (punya) ya azab (punishment) dega.

Allah hum sab ko sacche dil se acche kaam karne ki samajh de aur
dikhawa (show off) karne se bachaye. Ameen


• SHARAB PINE KA GUNAH
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Allah Talah Apni Izzat Ki Kasam Ke Saath farmata hai Ki Duniya Mein Jo
Insan Sharab Piyega Mein Qayamat Ke Din usko Aisa Pyaasa Rakhuga Ki
uska Dil Pyaas Ki Tezi Se
Aag Ki Tarah Jalega Aur Zuban uski Chhati tak latak jayegi.
Allah ne farmaya ki ‘kasam hai meri izzat ki mera jo banda sharab ka
ek ghut bhi piyega mai usko utna hi PEEP pilauga aur jo banda mere dar
se sharab pina chhod dega mai usko Mubarak HAWZO mai se
(shara-b-tahur) pilauga. (AHEMD-MISKAAT)

Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ne alag-alag jagah farmaya
ki - (1) Sharab Pine Wala firon Ke Saath Dozakh Mein Jayega. (2)
Hargiz Sharaab Na Peena, Is Liye Ke Sharaab Tamaam Buraiyoun ki Jad
Hai (3) Maa baap ki na farmani karne wala, juaa khelne wala, ehsan
jatane wala aur sharab peene wala jannat main a jayega. - (MISHKAAT)

Aajkal ke kuch nojawan sharab ko bura nahi samajhte, balki beer ko to
sharab maante hi nahi. Aur sharab/beer/alcohol ko fashion samajhte
hain.

Allah humko sharab se dppr rakhe aur jo pi rahe hain unki sharab ki
aadat door kar de.

AAmeen!!!!


• महत्वपूर्ण जरुरी सूचना
-------------------------------------------
जनहित में शेयर करे तथा भ्रष्टाचार को रोकने में मदद करे।।

अगर आपके पास लाइसेंस या गाड़ी के कागज नहीं होने की वजह से आपका चालान
काटा गया है तो उसे हाथोहाथ मत भरिये, आपको कागजात दिखाने के लिए 15
दिनों का समय कानूनन मिलता है। आप 15 दिनों के अन्दर कागजात
दिखाकर चालान को निरस्त करवा सकते है। ये जानकारी सूचना के अधिकार
अधिनियम के तहत प्राप्त की गयी है। —
Photo: महत्वपूर्ण जरुरी सूचना
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जनहित में शेयर करे तथा भ्रष्टाचार को रोकने में मदद करे।।

अगर आपके पास लाइसेंस या गाड़ी के कागज नहीं होने की वजह से आपका चालान
काटा गया है तो उसे हाथोहाथ मत भरिये, आपको कागजात दिखाने के लिए 15
दिनों का समय कानूनन मिलता है। आप 15 दिनों के अन्दर कागजात
दिखाकर चालान को निरस्त करवा सकते है। ये जानकारी सूचना के अधिकार
अधिनियम के तहत प्राप्त की गयी है। —


• Bhukamp (earthquake) Zal-zale Q Aate He????
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Hazrat Aaisha Siddiqa (radi Allahu anha) Se Kisi Ne Pucha Ke
Zal-Zale Q Aate He???
Maa Aaisha (Radi Allahu anha) Ne Farmaya Ke Jab Aurate paraye Mardo Ke
Liye Khushboo lagati hain (yaani khushbu laga kar bazaar mein jaati
hain taaki paraye aadmi us khushbu ko mehsus kare), aur Jab aurate
paraye mardo ke Samne Nangi Hone Me Sharam Mahsoos Na Kare (Yaani
Zinaa/adultery Aam Ho Jaye), aur Jab Sharaab or Music Aam Ho Jaye To
Zal-Zale Aate He.

Dosto, aajkal ye sab baat aam ho gai, har jagah ye baat dekhne ko
milti hai, phir zal-zale kyo na ayege.

Allah Hame In Tamaam Buraiyo Se bachaye.
AAMIN SUMMA AAMIN



• Kisi ladki ko badnaam mat karo
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har ek ladki hoti hai maa-baap ki jaan
facebook par photo daal na karo badnaam
kya pata us din ye dharti hi hil jaye
jab kisi page par tumhari bahan ki photo mil jaye
us din aankhon se bebasi ke aansu mat rona
mein sach kehta hu ki duniya kelogo apna zameer mat khona
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Ye kavita (poetry) un facebook ke page admins aur users ke liye hai
jo kisi ladki ka photo churakar upload karke puchte hain ki ‘How is this item?”
Is tarah ki sharmnaak post aajkal bahut zyada hone lagi hai.

Agar thik lage to isko zyada se zyada share kariye
dosto, thodi si masti ke liye kisi ki izzat se khilwaad na karo — with
Nick Sheikh and 11 others.


• Kisi ki pareshani par khush mat ho
-------------------------------------------
Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ne farmaya (jiska matlab ye hai ki)
Tum Apne Bhai Ki Musibat Par Khush Mat Ho, Warna Allah Us Par Raham
karega aur Tujhe Musibat Me Daal Dega

Ref - Tirmizi Shareef


• Maal - Daulat Ki Hakikat
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1,DOULAT Behtarin Naukar He Magar bahut badi Dushman Bhi He

2,Apni Umar or DOULAT Pe bharosa Mat Karo Kyonke Jo Cheez Ginti Me Aa
Jaye uskok Ek Din Jaroor Khatm Hona He

3, Ikhtiyar, Takat or DOULAT Ye Wo 3 Cheeje He Jiske Pane Se Log
Badalte Hi Nahi Benaqab Hote He

4, Nadaan Log DOULAT Ke Liye Dil Ka Chain Luta Dete He or aqalmand Dil
Ke Chain Ke Liye Doulat Luta Dete He

5,DOULAT,Hukumat or Musibat Me Aadmi Ki Aqal Ka exam Hota He Ke Aadmi
Sabr Karta He Ya Galat Qadam Uthata He

6,DOULAT ke nashe Se Allah Ki Panaah Mango kyonke Is Ke Nashe Ko
Siwaye Maut Ke Koi Dusri Cheez Nahi Utar Sakti

Allah Dualat Ka Sahi istemaal Karne Wala Banaye
AAMIN SUMMA AAMIN


• Tum log kabhi galat raaste par na jaoge agar......
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Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ne farmaya - tum logo mein
aisi cheez chhode jata hu ki agar tum usko thaame raho to kabhi bhi
nahi bhatkoge, ek to Allah ki kitab (quran sharif) dusra nabi ki
sunnat yaani hadees.


• 100 shahido ka sawab
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Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ne farmaya - jis time meri
ummat mein deen ka bigaad ho jayega us time jo insan mera tarika
(sunnato ko) thaame rahega usko 100 shahdio ke barabar sawab milega.

subhanAllah, dosto ek shahid ka sawab ye hai ki uske khoon ki boond
zamin par girne se pahle Allah usko maaf kar deta hai. Shahid akherat
mein ambiya ke pass bethe hoge.

Dosto, sunnat par amal karna koi bahut mushkil kaam nahi hai, hum
paani roz pite hain, agar sunnat tarike se pi lege to yahi paani pina
hamare liye sawab ka zariya ban jayega, hum roz joote pahante hain
agar joote sunnat tarike se pahan lege to joote pahanna bhi hamare
liye sawab ban jayega, matlab ye hai ki agar hum hamare roz-marra ke
kaam sunnat tarike se karne lage to roz ke kaam hamare liye sawab ka
zariya ban jayege. Kaam to kese bhi kare, ho jayega, lekin sunnat
tarike se karege to kaam bhi ho jayega aur sawab bhi milega.

Iske liye chhoti-chhoti sunnato ko sikhna shuru kariye, ki hamare
pyare nabi Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ke sunnat tarike
kya-kya the.


• Hadeeso ko dusro tak pahuchana
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Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ne farmaya jo koi 40
hadeeso ko meri umaat (dusro musalmano) tak pahucha de to mein
khas-tor par uski Allah se sifarsih (request) karuga.

Isliye dosto hadeeso ko zyada se zyada 'SHARE' kiya kijiye taaki HUM
bhi un khush nasib logo mein shamil ho jae jinki Hazrat Muhammad
(sallallahu alyhiwasallam) sifarish kare.


• Apne Khwab (sapne/dream) sabko mat sunao
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Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ne farmaya (jiska matlab ye
hai ki) neend mein dekhe khwabo ko har kisi se mat kahte phiro (aur
agar kahna hi ho to kisi jaankar aadmi ya aalim se kaho.)

Kyonki sacche musalman ka khwab nabuwat ka 46th hissa hota hai, aur
jab tak khwab kisi ko sunaya nahi jaata tab tak ghair-mustakil
(temporary) rahta hai lekin jab usko kisi ko suna diya jaaye (aur uski
taabir bhi bata di jaaye) to wo sach mein ho jata hai.

(Tirmiji, Mishkaat)

Isliye dosto, agar aapka khwab accha ho ya bura, sabko mat sunate
phiro, aur agar sunana hi hai to kisi jaankaar ya aalim ko suano (jo
khwabo ki taabir jaanta ho) aur agar aise insan ko khwab suna diya jo
khwabo ko sahi taabir nahi jaanta aur wo apne hisab se uski ulti-sidhi
taabir bata de to galat hone ka andesha bhi hota hai, isliye hum bhi
bager ilm ke kisi ko khwabo ki taabir na bataya kare.


• Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ki Saadgi
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Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) bimar ko dekhne jaya karte
the, mayyat (funeral) mein jaya karte the, gadhe par sawari kar liya
karte the aur ghulamo (naukaro) ke yaha ki dawat bhi kubul kar liya
karte the.
- Shimaile Tirmizi

Aur apni baki ka dudh khud nikal lete aur apne phate kapde mein khud
pewand (patch) laga late aur apne jooto ko khud hi si lete, apna aur
apne ghar walo ka kaam kar lete the.
- Ibne Saad

Apne naukaro (servant) ke saath khana kha lete, aur uske saath aata
ghundhwa lete, aur kisi cheez ki zarurat hoti to bazar se khud jaakar
le aate, aur in sabse badh kar dusro par ahsan karne wale, insaaf
karne wale, paak aur hamesha sach bolne wale the

-Madarijunnubuwa


• Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ki
Sabar aur Maaf karne ki aadat (part 2)
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Ek baar ek gaon wala (villager) aya aur Hazrat Muhammad (sallallahu
alyhiwasallam) ki chadar pakad kar itni zor se khichi ki aapki
gardan-e-mubarak par nishan aa gaye phir usne kaha ki mere in oonto
(camel) par anaj ladwa do, tum apne ya apne baap ke maal mein se kuch
nahi dete ho (yaani betulmaal ka maal hum hi logo ka hai, tumhara nahi
hai). Us gaon wale ki is tarah ki harkat aur baat par bhi Hazrat
Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) naraz na hue balki mazak mein
kahne lage ki jab tak tu is chadar ko khichne ka badla nahi dega, mein
anaj nahi duga, gaon wale ne kaha ki Allah ki kasam mein badla nahi
deta. Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) muskura diye aur uske
oonto (camel) par anaj ladwa diya.

(Khasaile nabwi)


• Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ki
Sabar aur Maaf karne ki aadat (part 1)
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Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) logo ko kabhi takleef nahi
pahuchate the aur bahut zyada naram dil ke the. Jo aapke saath bura
karta tha usko maaf kar dete the, jo aapke saath bura karte the uske
saath accha karte the, jo koi aapko kuch na deta aap usko dete the aur
jo aap par zulm karta aap usko bhi maaf kar dete the, aur kisi kaam ko
karne mein jo aasan hota aap usko chunte the, kabhi kisi se kisi baat
ka badla nahi liya, aapne kabhi kisi insan ya jaanwar ko apne haath se
nahi maara.

- Shimaili Tirmizi



• Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ka raham (daya) (part 3)
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Ek baar Hazrat Abu Masood Ansari (radi allahu anhu) apne naukar
(ghulam) ko kisi galti par peet rahe the, usi time Hazrat Muhammad
(sallallahu alyhiwasallam) ka waha se guzarna hua, aapne ye dekha aur
dukhi (ranjida) hokar farmaya - "Abu Masood, is naukar par tumko jitna
ikhtiyaar (adhikaar) hai Allah ko tum par usse zyada ikhtiyaar hai. Ye
baat sun kar wo sahabi dar gaye aur kaha ki mein is naukar ko Allah ki
raah mein azaad karta hu. Is par Hazrat Muhammad (sallallahu
alyhiwasallam) ne farmaya ki agar tum aisa na karte to Dozakh (hell)
ki aag tumko chu leti.

- Abu Daud


• Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ka raham (daya) (part 2)
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Ek baar Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ek ansari ke baag
mein gaye, waha ek oont (camel) bookh se pareshan ho raha tha, ye dekh
kar aapne pyar se uske peeth par haath fera aur uske maalik ko bulakar
farmaya "Is jaanwar ke baare mein tum khuda se nahi darte" (Yaani kya
tumko Allah ka dar nahi hai, jo is jaanwar ko bhuka rakha hua hai)

- Abu Daud



• Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ka raham (daya) (part 1)
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Ek baar ek sahabi (companion) Hazrat Muhammad (sallallahu
alyhiwasallam) ke pass aaye, unke haath mein kisi parinde (bird) ke
bacche the, aur wo chi-chi kar rahe the, aapne pucha ki ye bacche
kiske hain, sahabi ne jawab diya ki "Ya rasul Allah! mein ek jhaadi ke
pass se guzra to inko dekh kar nikal laya, inki maa ye dekh kar mere
sar par chakkar kaatne lagi, ye sun kar Hazrat Muhammad (sallallahu
alyhiwasallam) ne farmaya ki "Jaldi jao aur in baccho ko wahi rakh aao
jaha se laye ho"

(Mishkaat, abu daud)


• Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ki garibi ki chahat aur garibi
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Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) Allah se duniya mein rahne
ke liye jo sukh-aaram maangte Allah deta, lekin aap to Allah ke deen
ko failane ke liye aaye the. Duniya ki sukh-aaram ki chahat aapke dil
mein nahi thi.

Aap Allah se is tarah ki dua kiya karte the.
"Ae Allah, mujhe garibi ki haalat mein zinda rakh aur garibi ki haalat
mein duniya se uthana aur garibo ke group mein mera hashr farma
(Tirmizi, behaki, ibne maaza)

Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ne jab duniya se parada
kiya tab aapki jirah 30 saa jao ke badle ek yahudi ke pass girwi rakhi
hue thi.



• Future ki baat ke liye hamesha 'InshaAllah' kahiye
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Jab bhi aesi baat kahe ki "Mein ye kaam kar luga", ya "Main kal dusre
shahar jauga" etc. is tarah ki baat mein hamesha 'InshaAllah' kaha
kariye, InshaAllah ka matlab hota hai "Allah ne chaha to"

Jese "Mein ye kaam kar luga, InshaAllah" yaani Allah ne chacha to mein
ye kaam kar luga. (Meri koi taakat nahi, Allah hi mujhse ye kaam
karwaega). InshaAllah ke bager future ki baat karne par Allah naraz
hota hai.

Agar Allah ki narazgi se bachna ho to har future ki baat mein
'InshaAllah' kaha kariye.

Kahege na, InshaAllah


• Bimar ko dekhne jaaya karo
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BIMAAR KI KHIDMAT AUR USKA HAAL Malum KARNE WAALE KE
LIYE JANNAT ME BAAG (GARDEN) HOGA.

(ABU DAWOOD : 3098)


• Thank You nahi "JazakAllah" kaha karo
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JISKE SAATH BHALAI KI JAAYE AUR WO BHALAI KARNE WALE KO "JAZAKALLAHU
KHAIRA" KAHE TO USNE SHUKRIYA KA HAQ ADA KAR DIYA

(TIRMIZI : 2035)


• APNE WAARIS KO PURA HAQ DO
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JO SHAKHS APNE WAARIS KO MEERAAS SE MEHROOM KAREGA
TO ALLAH QIYAAMAT KE DIN USKO JANNAT SE MEHROOM FARMA DEGA.

(IBNE MAJA : 2703)


• IZZAT KESE BADHEGI
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MAAF KAR DENE AUR KISI KI BAAT BURI LAGNE PAR USKO TAAL DENE PAR ALLAH
TA'ALA BANDE KI IZZAT BADHAATA HAI.

{MUSLIM SHAREEF : 6592}


• Raat mein hifazat (safety) ke liye
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Hazrat Muhammad (Sallallahu Alaihi Wasallam) Ne Farmaya: (Jiska matlab
ye hai ki)
Jis Ne Sura e Baqara Ki Aakhri 2 Aayte«Aamanar Rasool or La
Yukallifullallah» Sone Se Pehle Parhli To Ye 2 Aayte Use Har Aafat or
Musibat Se (raat bhar) Bachane Ke Liye Kaafi Ho Jayegi

(Bukhari Shareef)

So Dosto In 2 Aayato Ko Parhe Bager Na Soye
Allah Amal Ki Taufeeq De
AAMIN SUMMA AAMIN


• Salam karne ke ahmiyat (value)
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Hazrat Muhammad (Sallallahu Alaihi Wasallam) Ne Farmaya: (Jiska matlab
ye hai ki)
Qasam hai us zaat ki jiskey qabzey mein meri jaan hai tum jannat mein
tab tak nahi ja sakte jab tak ki Imaan wale na ho jao, aur tum tab tak
imaan wale nahi ho sakte jab tak aapas mein ek dusre se Mohabbat na
karne lag jao, to kya main tumhe aesi cheez na bata du ki jab tum usko
karoge to Aapas mein mohabbat karne lagoge, wo cheez hai ki aapas mein
ek-dusre ko khoob salam kiya karo.

(Sunan Ibn Majah, Vol 1 , # 68)

Dosto, salam Allah ka kalam hai, salam karne se 10 neki milti hai aur
sunnat bhi ada hoti hai, salam karne se insan ka ghamand bhi toot jata
hai. salam se Allah hamare gharo mein barkat deta hai, ek hadees mein
Hazrat Muhammad (Sallallahu Alaihi Wasallam) ne farmaya (jiska matlab
ye hai ki) jab 2 musalam ek dusre ke pass se guzar jaate hain aur agar
wo ek dusre ko salam nahi karte to unka guzarna aisa hai jese 2 ghade
guzar gaye.

To dosto, salam karne ki ahmiyat ko samjho aur aapas mein khoob salam
kiya karo, din mein jitni baar milo ek dusre ko salam karo, ghar mein
jitni baar jao salam karo, subah sokar utho to ghar walo ko salam
karo, phone uthao to hello nahi balki salam karo.

To sab dost salam karege na, InshaAllah.


• Apni Zarurat Kisi Insan se mat zahir karo (balki Allah se zahir karo)
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Hazrat Muhammad (Sallallahu Alaihi Wasallam) Ne Farmaya:
JO SHAKHS BHOOKA HO YA USKO KOI AUR ZAROORAT HO AUR WO APNI BHOOK AUR
ZAROORAT KO LOGO SE CHHUPAYE RAKHE (UNKE SAAMNE ZAAHIR KAR KE UNSE NA
MAANGE) TO ALLAH TAALA KE ZIMME HAI KE USKO HALAAL TAREEQE SE EK SAAL
KI ROZI AATA FARMAAYE :

( SHOABUL EMAAN : 10054 )

ALLAH HUME HALAAL KI ROZI AATA KARE


• Sura e Fatiha (alhamdu sharif)
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Is Surat Ko Yaad Karlo, Is Me 70 Bimariyo Ki Shifa He

Subhanallah


• Jab Logo Se Udhar Liya Karo To Lota Diya Karo
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Hazrat Muhammad (Sallallahu Alaihi Wasallam) Ne Farmaya:
Jo Koi Logo Ka Qarz Par Liya Huwa Maal Ada Karne Ki Niyat Kar leta He
To Allah Us Ki Taraf Se Ada Kardega (Matlab Us Ke Liye Karz Utarna
Asaan Kardega) aur Jo Koi Qarz Ka Maal Na Dene Ki Niyat Karta He To
Allah Use Barbaad Kardeta He

Ref
Bukhari Shareef

Aaj Kal Qarz lene ke baad zyadatar log Hazam Karne Ke Chakkar Me Rehte
He Phir Allah Ki Madad Bhi Aise Logo Par Nahi Aati He, Aisa maal aata
hua dikhta hai, jaata hua nahi dikhta (yaani kisi bimari, accident
mein kharch ho jata hai)

Allah Hame Sahi Samajh Ata Kare
AAMIN SUMMA AAMIN


• Ayatal Qursi (Quran ki ek ayat) padhne ke faide
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Hazrat Muhammad (Sallallahu Alaihi Wasallam) Ne Farmaya:
Jab BISTAR[Bed]Par Jao To AAYAT UL KURSI Parh Liya Karo Allah Ki Taraf
Se Ek HIFAZAT Karne Wala FARISHTA Tumhare Shat Rahega or Koi SHEITAAN
SUBAH Tak Tumhare Paas Nahi Aayega

Ref
Bukhari Shareef

So Dosto Sab Log Aayat ul Kaursi Ko Yaad Kar Lo
Allah Hame Parhne Ki Taufeeq De
AAMIN SUMMA AAMIN


• Sunnato par amal karo
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Hazrat Muhammad (Sallallahu Alaihi Wasallam) Ne Farmaya:
Jis nay Meri Sunnat say mohabat ki us nay Mujh say mohabat ki or jis
nay Mujh say mohabat ki wo Jannat main Mere sath hoga

(IBNE ASAKIR V9 P343)


• 5 Kaam Ki Baate
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Hazrat Muhammad (Sallaho Alayhi Wasllam) Ne Farmaya Ke
Koi Esa Aadmi He Jo In Bato Par Khud Bhi Amal (folllow) Kare Ya Kam se
Kam Un Logo Ko Hi Batade Jo Is Par Amal Kare

Hazrat Abu Huraira (radi allahu anhu) Farmate He Ke Mene Kaha Allah Ke
Rasul (Sallaho Alayhi Wasllam) Mein Hazir Hu. Hazrat Muhammad (Sallaho
Alayhi Wasllam) Ne Farmaya Ne Mera Hath Pakda Or 5 Bate Batlai

1) Haram Bato Se Door Raho Bade Ibadat Guzar Bando Me Shamil Ho Jaoge.
2 Apni Taqdeer Par Razi Raho Be Niyaz Bando Me Shamil Ho Jaoge
3 Apne Padosi Se Accha Salook (vyawhar) Karte Raho Momin (sacche
muslim) Ban Jaoge
4 Jo Baat Apne Liye Pasand Karo Wahi Dusre Muslman Ke Liye Bhi Chaho
complete Muslman Ban Jaoge
5 Bahut Zoor Zoor Se Mat Hanso Us Se Dil Murda Ho Jata He

Ref
Tirmizi Shareef
Musnad e Ahmad

Allah Hame In 5 Bato Par Amal Ki Taufeeq De AAMIN


• Jannat mein mahal banwa lo
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JANNAT Me GHAR:

Hazrat Muhammad (Sallalhu Alahi Wa Sallam) Ne Farmaya Ke
Jo Muslman Rozana sirf Allah Ki khushi Ke Liye 12 RAKA'AT NAFAL
[SUNNATE] Ada Karega To Allah Us Ke Liye Jannat Me Ek
Makaan Banayega

- Muslim Shareef

Wo 12 Raka'at Ye He
Fajar Se Pehle 2 Raka'at
Zohar Se Pehle 4 Raka'at or
2 Raka'at Zohar Ki Farz Ke Baad
Magrib Ke Baad 2 Raka'at
Isha Ke Baad 2 Raka'at

Allah Hame Amal Ki Taufeeq De
AAMIN SUMMA AAMIN


• Allah kis par laanat karta hai
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Hazrat Muhammad (Sallalhu Alahi Wa Sallam) Ne Farmaya
Allah Taala Lanat Karta He Us Sakhs Per Jo Jaan Bujhkar Kisi Ke Satar
Ko Dekhta Ho Or Us Per Bhi Lanat He Jo Bila wajah Satar Dikhlata
Ho…………..

Behki Fi Shobail Imaan;7538..

Satar us badan ke hisse ko kahte hain jo islam ke hisab se kapde se
dhaakna zaruri hai, Aadmi aur aurat ka satar alag-alag hota hai.

Aadmi ka pet ki naaf se ghutne tak ka badan satar hai aur isko dhaakna
zaruri hai.

Aurat ka pura badan hi satar hai, sirf wo chehra, haath aur per ke
panje khule rakh sakti hai, yaani aurat ke baal bhi satar mein aate
hain, yaani inko chhupana bhi zaruri hai, aalimo ne farmaya ki agar
aurat apne chehere ko bhi dhak le to zyada behtar

Allah humko amal ki tofik de


• Sharab pine ka gunah
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Hazrat Muhammad (SallAllahu AlyhE Wasallam) Ne Farmaya:"Sharab
buraiyon Ki Jad Hy, Jis Ny Sharab Pi, 40 Roz Uski Namaz Qabool Nahi
Hogi. Wo Aadmi Jahliyat Ki Maut Marega Jisky Pait Mein Martay Waqt
Sharab Hogi."

(Tabrani,Awst. Sahihah: 1636)


• Har kisi ka time badalta hai
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Parinda zinda ho to chiti khata hy Magar jub parinda mar jata hy to
chitiya usay khati hain.. Waqt kabhi b badal sakta hy. Ek darakht 1
lakh machis ki teeli bana sakta hy, Magar ek machis ki teeli aik lakh
darakht jala sakti hy, To zindagi mein kabhi kisi ko mat satana us
time shayed Aap taqatwar hon Magar waqt Aap se zyada taqatwar hy.


• Darud sharif padhne ke faide
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Mere dosto, Har waqt Hazrat Muhammad (Sallallahu Alaihi
Wasallam) par darood sharif parha karo Q k Ek dilchasp haqiqat "jab
neki ki jaaye to right farishta likhta hai;or jab burayi ki jaaye to
left farishta likhta hai; kya aap ko aisa "amal" malum hai jiske karne
se dono farishte harkat me aa jaate hai. Wo"amal"hai darood-e-shareef
ka kasrat se padhna. right farishta 10
nekiyan likhta hai; aur left farishta 10 gunah mitatha hai; aur ALLAH
10 darjaat buland karta hai.

SubhanALLAH


• Khane ki cheez ki izzat karo
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Hazrat Muhammad (salallaho alyhi wssallam) jab ghar laaye to toh Roti
ka tukda giraa hua dekha toh Aap salallaho alyhi wssallam ne use uthaa
kar saaf kiya aur Khaa liya aur farmaya: Aye Aisha (radi allahu anhu)
! izzat-daar cheez ki izzat karo, jab Allah kisi Qaum ka Rizq cheen
leta hai toh waapas nahi karta.

[Ibne Majah, jild no.2, Hadees no.1142]


• Musibat kyo door nahi hoti
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Aksar Log Kehte He Ke Hamare Ghar Me ASRAAT He JINNAAT He TAWEEZ Nikle
He, Kisi Ne Karobaar Band Karwadiya He, Nokri Nahi Milti He, Shahdi Ke
Liye Rishte Nahi Aate Wagera Wagera.
To AISE LOG YAAD RAKKHE, Jis Ghar Me Ya Dukaan Me Sara Din TV Chale or
behaya Filme Dekhi Jaye, 5 Waqt Ki Namaaz Ki Koi Fikar Na Ho, Sadqa
(donation) Ada Na Kiye Jaye, Music Bajaya Jaye, Quraan Ki Tilawa Na
Hoti Hom Zakaat Na Dete Ho, To Aise Ghar Me Jinnat Hi Aayennge. Nokri
or Karobaar Me Barkate Nahi Hogi, Na Koi Shahdi Ka Rishta Le Kar
Aayega aur Pareshani Hi Pareshaani Hogi

So Dosto Khuda Ke Waste Apne Ghar Ko Jannat Ka Baag Banao
Haraam Kaam Chhodo aur Allah Ki Taraf Aao

Allah Hame Sahi Samajh Ata Kare

AAMIN SUMMA AAMIN


• हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम) की कुछ शिक्षाएं (सार/भावार्थ)
यहां प्रस्तुत की जा रही हैं:

● जो व्यक्ति अपने छोटे-छोटे बच्चों के भरण-पोषण के लिए जायज़ कमाई के
लिए दौड़-धूप करता है वह ‘अल्लाह की राह में’ दौड़-धूप करने वाला माना
जाएगा। (लेकिन इस भाग दौड़ में फ़र्ज़ कामों को न छोड़े जेसे नमाज़, रोज़ा आदि)

● घूस (रिश्वत) लेने और देने वाले पर लानत है...कोई क़ौम ऐसी नहीं जिसमें
घूस का प्रचलन हो और उसे भय व आशंकाए घेर न लें।

● सबसे बुरा भोज (बुरी दावत) वह है जिसमें धनवानों को बुलाया जाए और
निर्धनों को छोड़ दिया जाए।

● सबसे बुरा व्यक्ति वह है जो अपनी पत्नी के साथ किए गए गुप्त व्यवहारों
(यौन क्रियाओं) को लोगों से कहता है, राज़ में रखी जाने वाली बातों को
खोलता है।

● यदि तुमने मां-बाप की सेवा की, उन्हें ख़ुश रखा, उनका आज्ञापालन किया
तो स्वर्ग (जन्नत) में जाओगे। उन्हें दुख पहुंचाया, उनका दिल दुखाया,
उन्हें छोड़ दिया तो नरक (जहन्नम) के पात्र बनोगे।

● बाप जन्नत का दरवाज़ा है और मां के पैरों तले जन्नत है (अर्थात्
मां-बाप की सेवा जन्नत-प्राप्ति का साधन बनेगी)

● तुम लोग अपनी सन्तान के साथ दया व प्रेम और सद्व्यवहार से पेश आओ और
उन्हें अच्छी (नैतिक) शिक्षा-दीक्षा दो।

● सन्तान के लिए माता-पिता का श्रेष्ठतम उपहार (तोहफ़ा, Gift) ये है की
उन्हें अच्छी शिक्षा-दीक्षा देना, उच्च शिष्टाचार सिखाना।

● तुममें सबसे अच्छा इन्सान वह है जो अपनी बीवी के साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करे।

● पत्नी के साथ दया व करुणा से पेश आओ तो अच्छा जीवन बीतेगा।

● अल्लाह की अवज्ञा (Disobedience) से बचो। रोज़ी (आय) कमाने का ग़लत
तरीक़ा, ग़लत साधन, ग़लत रास्ता न अपनाओ, क्योंकि कोई व्यक्ति उस वक्त तक
मर नहीं सकता जब तक (उसके भाग्य में लिखी) पूरी रोज़ी उसको मिल न जाए।
हां, उसके मिलने में कुछ देरी या कठिनाई हो सकती है। (तब धैर्य रखो, बुरे
तरीके़ मत अपनाओ) अल्लाह से डरते हुए, उसकी नाफ़रमानी से बचते हुए सही,
जायज़, हलाल तरीके़ अपनाओ और हराम रोज़ी (आय) के क़रीब भी मत जाना।

● वस्त्रहीन (नंगे) होकर मत नहाओ। अल्लाह हया वाला है और अल्लाह के
(अदृश्य) फ़रिश्ते भी (जो हर समय तुम्हारे आसपास रहते हैं) हया करते हैं।

● अत्याचारी, क्रूर और ज़ालिम शासक के सामने हक़ (सच्ची, खरी,
न्यायनिष्ठ) बात कहना (सच्चाई की आवाज़ उठाना) सबसे बड़ा धर्म-युद्ध है।

● धन हो तो ज़रूरतमन्दों को क़र्ज़ दो। वापसी के लिए इतनी मोहलत (समय) दो
कि कर्ज़दार व्यक्ति उसे आसानी से लौटा सके। किसी वास्तविक व अवश्यंभावी
मजबूरी से, समय पर न लौटा सके तो उस पर सख़्ती तथा उसका अपमान मत करो,
उसे और समय दो।

● क़र्ज़ (ऋण) पर ब्याज न लो (ब्याज इस्लाम में हराम है)।

● सामर्थ्य हो जाए, आर्थिक स्थिति अनुकूल हो जाए फिर भी क़र्ज़ वापस
लौटाया न जाए तो यह महापाप है (जिसका दंड परलोक में नरक की यातना व
प्रकोप के रूप में भुगतना पड़ेगा)।

● जो व्यक्ति क़र्ज़ वापस किए बिना (इस कारण कि वह इसका सामर्थ्य नहीं
रखता था) मर गया तो उसकी अदायगी की ज़िम्मेदारी इस्लामी कल्याणकारी राज्य
(उसके शासक) पर है।

● क़र्ज़ देकर एक व्यक्ति किसी ज़रूरतमंद आदमी को चोरी, ब्याज और भीख
मांगने से बचा लेता है।

● मांगने के लिए हाथ मत फैलाओ, यह चेहरे को यशहीन कर देता है (और
आत्म-सम्मान के लिए घातक होता) है। मेहनत-मशक्क़त करो और परिश्रम से
रोज़ी कमाओ। नीचे वाला (भीख लेने वाला) हाथ, ऊपर वाले (भीख देने वाले)
हाथ से तुच्छ, हीन होता है।

मज़दूर की मज़दूरी उसके शरीर का पसीना सूखने से पहले दे दो (अर्थात्
टाल-मटोल, बहाना आदि करके, उसे उसका परिश्रमिक देने में अनुचित देरी मत
करो)।

● सरकारी कर्मचारियों को भेंट-उपहार देना घूस (रिश्वत) है।

● मज़दूर की मज़दूरी तय किए बिना उससे काम न लो।

● अल्लाह कहता है कि परलोक में मैं तीन आदमियों का दुश्मन रहूँगा यानी को
कठिन सजा दी जायेगी । एक: जिसने मेरा नाम लेकर (जैसे-‘अल्लाह की क़सम’
खाकर) किसी से कोई वादा किया, फिर उससे मुकर गया, दो: जिसने किसी आज़ाद
आदमी को बेचकर उसकी क़ीमत खाई; तीन: जिसने मज़दूर से पूरी मेहनत ली और
फिर उसे पूरी मज़दूरी न दी।

● पत्नी के मुंह में हलाल कमाई का कौर (लुक़मा) डालना इबादत है।

● रास्ते में पड़ी कष्टदायक चीज़ें (कांटा, पत्थर, केले का छिलका आदि)
हटा देना (ताकि राहगीरों को तकलीफ़ से बचाया जाए) इबादत है।

● कोई व्यक्ति (मृत्यु-पश्चात) माल छोड़ जाए तो वह माल उसके घर वालों के
लिए है। और किसी (कम उम्र सन्तान, पत्नी, आश्रित माता-पिता आदि) को
बेसहारा छोड़ (कर मर) जाए तो उनका बोझ उठाने की जिम्मदारी मुझ (इस्लामी
सरकार) पर है।

● जिसका भरण-पोषण करने वाला कोई नहीं उस (असहाय, Destitute) के भरण-पोषण
का ज़िम्मेदार राज्य है।

● जिस व्यक्ति ने बाज़ार में कृत्रिम अभाव पैदा करने की नीयत से चालीस
दिन अनाज को भाव चढ़ाने के लिए रोके रखा (जमाख़ोरी Hoarding की) तो ईश्वर
का उससे कोई संबंध नहीं, फिर अगर वह उस अनाज को ख़ैरात (दान) भी कर दे तो
ईश्वर उसे क्षमा नहीं करेगा। उसकी चालीस वर्ष की नमाज़ें भी ईश्वर के
निकट अस्वीकार्य (Unacceptable) हो जाएंगी।

● मुसलमानों में मुफ़लिस (दरिद्र) वास्तव में वह है जो दुनिया से जाने के
बाद (मरणोपरांत) इस अवस्था में, परलोक में ईश्वर की अदालत में पहुंचा कि
उसके पास नमाज़, रोज़ा, हज आदि उपासनाओं के सवाब (पुण्य) का ढेर था।
लेकिन साथ ही वह सांसारिक जीवन में किसी पर लांछन लगाकर, किसी का माल
अवैध रूप से खाकर किसी को अनुचित मारपीट कर, किसी का चरित्रहनन करके,
किसी की हत्या करके आया था। फिर अल्लाह उसकी एक-एक नेकी (पुण्य कार्य का
सवाब) प्रभावित लोगों में बांटता जाएगा, यहां तक उसके पास कुछ सवाब बचा न
रह गया, और इन्साफ़ अभी भी पूरा न हुआ तो प्रभावित लोगों के गुनाह को उस
पर डाले जाएंगे। यहां तक कि बिल्कुल ख़ाली-हाथ (दरिद्र) होकर नरक
(जहन्नम) में डाल दिया जाएगा।

● अल्लाह फ़रमाता है कि बीमार की सेवा करो, भूखे को खाना खिलाओ,
वस्त्रहीन को वस्त्र दो, प्यासे को पानी पिलाओ। ऐसा नहीं करोगे तो मानो
मेरा हाल न पूछा, जबकि मानों मैं स्वयं बीमार था; मानो मुझे कपड़ा नहीं
पहनाया, मानो मैं वस्त्रहीन था, मानो मुझे खाना-पानी नहीं दिया जैसे कि
स्वयं मैं भूखा-प्यासा था।

● किसी परायी स्त्री को (व्यर्थ, अनावश्यक रूप से) मत देखो, सिवाय इसके
कि अनचाहे नज़र पड़ जाए। नज़र हटा लो। पहली निगाह तो तुम्हारी अपनी थी;
इसके बाद की हर निगाह शैतान की निगाह होगी। (अर्थात् शैतान उन बाद वाली
निगाहों के ज़रिए बड़े-बड़े नैतिक व चारित्रिक दोष, बड़ी-बड़ी बुराइयां
उत्पन्न कर देगा।)

● वह औरत (स्वर्ग में जाना तो दूर रहा) स्वर्ग की ख़ुशबू भी नहीं पा सकती
जो लिबास पहनकर भी नंगी रहती है (अर्थात् बहुत चुस्त, पारदर्शी, तंग या
कम व अपर्याप्त (Scanty) लिबास पहनकर, देह प्रदर्शन करती और समाज में
नैतिक मूल्यों के हनन, ह्रास, विघटन तथा अनाचार का साधन व माध्यम बनती
है)।

● दो पराए (ना-महरम) स्त्री-पुरुष जब एकांत में होते हैं तो सिर्फ़ वही
दो नहीं होते बल्कि उनके बीच एक तीसरा भी अवश्य होता है और वह है
‘‘शैतान’’। (अर्थात् शैतान के द्वारा दोनों के बीच अनैतिक संबंध स्थापित
होने की शंका व संभावना बहुत होती है।)

● तुम (ईमान वालों, अर्थात् मुस्लिमों) में सबसे अच्छा व्यक्ति वह है
जिसके स्वभाव (अख़लाक़) सबसे अच्छे हैं।

● वह व्यक्ति (यथार्थ रूप में) मोमिन (अर्थात् ईमान वाला, मुस्लिम) नहीं
है जिसका (कोई ग़रीब पड़ोसी भूखा सो जाए, और इस व्यक्ति को उसकी कोई
चिंता न हो और यह पेट भर खाना खाकर सोए। (चाहे पडोसी किसी भी धर्म को
मानने वाला हो )

● वह व्यक्ति (सच्चा, पूरा, पक्का) मोमिन मुस्लिम नहीं है जिसके उत्पात
और जिसकी शरारतों से उसका पड़ोसी सुरक्षित न हो। (चाहे पडोसी किसी भी
धर्म को मानने वाला हो )

● फल खाकर छिलके मकान के बाहर न डाला करो। हो सकता है आसपास (पड़ोसियों)
के ग़रीब घरों के बच्चे उसे देखकर महरूमी, ग्लानि और अपनी ग़रीबी के
एहसास से दुखी हो उठें। (चाहे पडोसी किसी भी धर्म को मानने वाला हो )

● अपने अधीनों (मातहतों, Subordinates) से, उनको क्षमता, शक्ति से अधिक काम न लो।

● पानी में मलमूत्र मत करो (जल-प्रदूषण उत्पन्न न करो) ज़मीन पर किसी बिल
(सूराख़) में मूत्र मत करो। (इससे कोई हानिकारक कीड़ा, सांप-बिच्छू आदि,
निकल कर तुम्हें हानि पहुंचा सकता है और इससे पर्यावर्णीय संतुलन भी
प्रभावित होगा।)

● अगर तुम कोई पौधा लगा रहे हो और प्रलय आ जाए तब भी पौधे को लगा दो। (इस
शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से वातावर्णीय हित के लिए वृक्षारोपण का
महत्व बताया गया है।)

● पानी का इस्तेमाल एहतियात से करो चाहे जलाशय से ही पानी क्यों न लिया
हो और उसके किनारे बैठे पानी इस्तेमाल कर रहे हो। ज़रूरत से ज़्यादा पानी
व्यय (प्राकृतिक संसाधन का अपव्यय) मत करो (इस शिक्षा में प्रतीकात्मक
रूप से जल-संसाधन अनुरक्षण (Water resource conservation) के महत्व का
भाव निहित है)।

● भोजन के बर्तन में कुछ भी छोड़ो मत। एक-एक दाने में बरकत है। बर्तन को
पूरी तरह साफ़ कर लिया करो। खाद्यान्न/खाद्यपदार्थ का अपव्यय मत करो। (इस
शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से खाद्य-संसाधन-अनुरक्षण (Food resource
conservation) का भाव निहित है।

● किसी पक्षी को (पिजड़े आदि में) क़ैद करके न रखो। (इस शिक्षा में
प्रतीकात्मक रूप से हर जीवधारी के ‘स्वतंत्र रहने’ के मौलिक अधिकार का
महत्व निहित है।)

● किसी पालतू जानवर-विशेषतः जिससे तुम अपना काम लेते हो, जैसे बैल, ऊंट,
गधा, घोड़ा आदि–को भूखा-प्यासा मत रखो, उससे उसकी ताक़त से ज़्यादा काम
मत लो; उसको निर्दयता के साथ मारो मत। याद रखो, आज जितनी शक्ति तुम्हें
उस पर हासिल है, परलोक में (ईश्वरीय अदालत लगने के समय) ईश्वर को तुम पर
उससे अधिक शक्ति होगी।

● दान देने में, दिखावा मत करो कि लोगों में दानी-परोपकारी व्यक्ति के
तौर पर अपनी शोहरत के अभिलाशी रहो। दान मात्र ईश्वर को प्रसन्न करने के
लिए, परलोक में अल्लाह ही से पारितोषिक पाने के लिए दो।)

● जिसे दान दो उस पर एहसान, उपकार मत जताओ, उसे मानसिक दुःख मत पहुंचाओ।

● जिसने किसी ज़िम्मी (इस्लामी शासन में ग़ैर-मुस्लिम बाशिन्दे) की हत्या
की उसके ख़िलाफ़ अल्लाह की अदालत में (परलोक में) ख़ुद मैं मुक़दमा दायर
करूंगा। (विदित हो कि ‘ज़िम्मी’ का अर्थ है वह ग़ैर-मुस्लिम व्यक्ति
जिसके जान-माल की हिफ़ाज़त का ज़िम्मा, उस के मुस्लिम राज्य में रहते
हुए, शासन व इस्लामी शासक पर होता है, ज़िम्मी की हत्या करने वाला
मुसलमान, सज़ा के तौर पर क़त्ल किया जाएगा और अगर, गवाह-सबूत न होने या
किसी और कारण से वह क़त्ल होने से बच भी गया तो हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो
अलैहेवसल्लम परलोक में स्वयं उसके ख़िलाफ़ ईश्वरीय अदालत में दंड के और
ज़िम्मी के हक़ में इन्साफ़ के याचक होंगे।)

● पराई स्त्रियों को दुर्भावना-दृष्टि से मत देखो। आंखों का भी व्यभिचार
होता है और ऐसी दुर्भावनापूर्ण दृष्टि डालनी, आंखों का व्यभिचार (ज़िना)
है। (और यही दृष्टि शारीरिक व्यभिचार/बलात्कार का आरंभ बिन्दु है)।

● जो तुम पर एहसान करे तो उसका एहसान हमेशा याद रखो। किसी पर एहसान करो
तो इसे भूल जाओ (अर्थात उस पर एहसान न जताओ)।

● कोई व्यक्ति किसी चीज़ का सौदा कर रहा हो तो तुम तब तक अपनी कीमत मत
लगाओ जब तक की उसका सौदा ख़तम न हो जाए. (अगर उस व्यक्ति का सौदा तय नहीं
हुआ तब तुम सौदा करो)।

● नमूना (Sample) कुछ दिखाकर, माल किसी और क्वालिटी का मत बेचो।
(यानी अच्छा माल दिखा कर, ख़राब माल मत बेचो)

● रुपये से रुपया मत कमाओ। (यानी ब्याज पर पैसा मत दो) बल्कि रुपये से
कारोबार (Business, Trading) करके रुपया कमाओ। यह ‘मुनाफ़ा’ (Profit,
लाभ) है, और वैध व पसन्दीदा है। (अगर किसी को पैसे की ज़रूरत हो तो उसको
बगेर ब्याज के उधार दे दो)

● कोई व्यक्ति पाप करता है तो उसके दिल में एक काला धब्बा पड़ जाता है।
यदि वह पछताकर, पश्चाताप करते हुए तौबा कर लेता और अल्लाह से माफ़ी मांग
लेता है और संकल्प कर लेता है कि अब उस पाप कर्म को नहीं करेगा, तो वह
धब्बा मिट जाता है। यदि वह ऐसा नहीं करता तो वह बार-बार पाप करेगा और हर
बार दिल के अन्दर का धब्बा फैल कर बड़ा होता जाएगा। अंततः उसका पूरा हृदय
सियाह (काला) हो जाएगा (और पापाचार उसके जीवन का अभाज्य अंग बन जाएगा)।

● झूठी गवाही देना उतना ही बड़ा पाप है जितना शिर्क (अर्थात् ईश्वर के
साथ किसी और को भी शरीक-साझी बना लेने का महा-महापाप)।

● पहलवान वह नहीं है जो कुश्ती में किसी को पछाड़ दे, बल्कि अस्ल पहलवान
वह है जो गु़स्सा आ जाने पर, अपने क्रोध को पछाड़ दे (अर्थात् उस पर
क़ाबू पा ले)।



• हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम) का संक्षिप्त परिचय

(इसको इतना शेयर करो की जो लोग हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम) के
बारे में गलत भ्रान्ति रखते हैं, उनकी सारी गलत फहमियां दूर हो जाएँ
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आपका नाम मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम) व आपके उपनाम मुस्तफ़ा, अमीन
(अमानतदार) , सादिक़ (सच्चा) , इत्यादि हैं। आपके पिता का नाम अब्दुल्लाह
और दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब थे। तथा आपकी माँ का नाम आमिना था. आपके
के पिता का स्वर्गवास आपके के जन्म से पूर्व ही हो गया था। और जब आप 6
वर्ष के हुए तो आपकी माता का भी स्वर्गवास हो गया। अतः 8 वर्ष की आयु तक
आप का पालन पोषण आपके दादा ने किया। दादा के स्वर्गवास के बाद आप अपने
प्रिय चचा हज़रत अबु तालिब के साथ रहने लगे।

हज़रत अबु तालिब के घर मे आप का व्यवहार सबकी दृष्टि का केन्द्र रहा।
आपने शीघ्र ही सबके हृदयों मे अपना स्थान बना लिया। आप बचपन से ही दूसरे
बच्चों से भिन्न थे। वह खाने पीने मे भी दूसरे बच्चों की हिर्स नही करते
थे। वह किसी से कोई वस्तु छीन कर नही खाते थे। तथा सदैव कम खाते थे,
कभी-कभी ऐसा होता कि सोकर उठने के बाद आबे ज़मज़म (मक्के मे एक पवित्र
कुआ) पर जाते तथा कुछ घूंट पानी पीलेते व जब उनसे नाश्ते के लिए कहा जाता
तो कहते कि मुझे भूख नही है ।

उन्होने कभी भी यह नही कहा कि मैं भूखा हूं। वह सभी अवस्थाओं मे अपनी आयु
से अधिक गंभीरता का परिचय देते थे। उनके चचा हज़रत अबु तालिब सदैव उनको
अपनी शय्या के पास सुलाते थे। वह कहते थे कि मैने अपने भतीजे को कभी झूट
बोलते, अनुचित कार्य करते व व्यर्थ हंसते हुए नही देखा। वह बच्चों के
खेलों की ओर भी आकर्षित नही थे। सदैव तंन्हा रहना पसंद करते तथा मेहमान
से बहुत प्रसन्न होते थे।

जब आपकी आयु 25 वर्ष की हुई तो अरब की एक व्यापारी महिला जिनका नाम खदीजा
था उन्होने पैगम्बर के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा। हजरते खदीजा एक
विधवा थी और उनकी आयु उस समय ४० वर्ष की थी. पैगम्बर ने इसको स्वीकार
किया तथा कहा कि इस सम्बन्ध मे मेरे चचा से बात की जाये। जब हज़रत अबु
तालिब के सम्मुख यह प्रस्ताव रखा गया तो उन्होने अपनी स्वीकृति दे दी।
तथा इस प्रकार आपका का विवाह हज़रत खदीजा के साथ हुआ। निकाह स्वयं हज़रत
अबुतालिब ने पढ़ा।

जब आप ४० वर्ष के हुए तो आपने पैगम्बरी (इशदूत होने) की घोषणा तथा जब
कुरआन की यह आयत नाज़िल हुई कि (अर्थात ऐ पैगम्बर अपने निकटतम परिजनो को
अल्लाह से और बुरे कामो से डराओ) तो पैगम्बर ने एक रात्री भोज का प्रबन्ध
किया। तथा अपने निकटतम परिजनो को भोज पर बुलाया। भोजन के बाद कहा कि मै
तुम्हारी ओर पैगम्बर ((इशदूत) बनाकर भेजा गया हूँ ताकि तुम लोगो को
बुराईयो से निकाल कर अच्छाइयों की ओर अग्रसरित करू। इस अवसर पर आपने अपने
परिजनो से एकीश्वरवादी बनने की अपील की। और इस महान् कार्य मे सहायता का
निवेदन भी किया परन्तु हज़रत अली (रदी अल्लाहु अन्हु) जो आपके चाचा के
लड़के थे, के अलावा किसी ने भी साहयता का वचन नही दिया। इसी समय से मक्के
के सरदार आपके विरोधी हो गये तथा आपको यातनाऐं देने लगे। एक करार करके
आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए गए, और इस तरह मक्के के लोगों का विरोध बढ़ता
गया। परन्तु आप अपने मार्ग से नही हटे तथा एकीश्वरवादी बनने की अपील करते
रहे। कुछ समय बाद कुछ लोगो ने आपकी बात को मान लिया. इसके बाद मक्का शहर
के लोगो और सरदारों ने ने आप पर तथा आपके सहयोगियो पर आर्थिक प्रतिबन्ध
लगा दिये।

प्रतिबन्धो के करार से छुटने के बाद पैगम्बर ने फिर से इस्लाम प्रचार
आरम्भ कर दिया। पैगम्बरी (इशदूत) की घोषणा के बाद पैगम्बर 13 वर्षों तक
मक्के मे रहे। इस बार लोगों का विरोध अधिक बढ़ गया। तथा वह आपकी हत्या का
षड़यंत्र रचने लगे। इसी बीच पैगम्बर के दो बड़े सहयोगियों हज़रत अबुतालिब
(चाचा) तथा हज़रत खदीजा (बीवी) का स्वर्गवास हो गया।

जब आप मक्के मे अकेले रह गये तो अल्लाह की ओर से संदेश मिला कि मक्का शहर
छोड़ कर मदीने शहर चले जाओ। शहर छोड़ने से पहले आपने अपने दुश्मनों की
अमानाते लौटा दी जो उन्होंने उनके पास देख भाल के लिए रखी थी (क्योंकि उस
टाइम बैंक नहीं हुआ करते थे इसलिए लोग अपना पैसा, माल उसके पास रख देते
थे जिनकी इमानदारी पर उनको पूरा भरोसा होता था, मुहम्मद (सल्लल्लाहो
अलैहेवसल्लम) के लोग दुश्मन हो गए थे, लेकिन उनकी सच्चाई और इमानदारी के
कायल थे, इसलिए अपना माल उन्ही के पास रखते थे, इसलिए मुहम्मद
(सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम) ने मदीना जाने से पहले अपने दुश्मनों के
माल-पैसा को लौटाने का हुक्म दिया)

मक्का-मदीना दोनों शहर की दूरी लगभग ४०० किलोमीटर थी. आपने रात्रि के समय
मक्के से मदीने की ओर प्रस्थान किया। मक्के से मदीने की यह यात्रा हिजरत
कहलाती है। तथा इसी यात्रा से हिजरी सन् आरम्भ हुआ। मुस्लिम का वार्षिक
कैलेंडर यही से गिना जाता है . मदीने मे पैगम्बर को नये सहयोगी प्राप्त
हुए तथा उनकी सहायता से पैगम्बर ने इस्लाम प्रचार को अधिक तीव्र कर दिया।
दूसरी ओर मक्के के लोगों और सरदारों की चिंता बढ़ती गयी तथा वह अपना बदला
लेने के लिये युद्ध की तैयारियां करने लगे।

इस प्रकार मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम) को मक्कावासियों ने मदीना
चले जाने के बाद भी परेशान करना नहीं छोड़ा और और आपको उनसे कई युद्ध करने
पड़े लेकिन ज़्यादातर युद्ध में मक्का वालो की हार हुई, अन्त मे आपने
शान्ति पूर्वक मक्के जाकर हज करना चाहा परन्तु मक्कावासी इस से सहमत नही
हुए। और उनको हज पर नहीं आने दिया गया. आपके पास शक्ति के होते हुए भी
युद्ध नही किया तथा सन्धि कर के मानव मित्रता का परिचय दिया। तथा सन्धि
की शर्तानुसार हज को अगले वर्ष तक के लिए स्थगित कर दिया। सन् 10 हिजरी
मे पैगम्बर ने 125000 मुस्लमानो के साथ हज किया। तथा मुस्लमानो को हज
करने का प्रशिक्षण दिया।

हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम) को अल्लाह ने समस्त मानवता के लिए
आदर्श बना कर भेजा इस सम्बन्ध मे कुरआन इस प्रकार वर्णन करता है (अर्थात
पैगम्बर का चरित्र आप लोगो के लिए आदर्श है)

अतः आप के व्यक्तित्व मे मानवता के सभी गुण विद्यमान थे। आप के जीवन की
मुख्य विशेषताऐं निम्नलिखित हैं। सत्यता आपके जीवन की विशेष शोभा थी।
आपने ने अपने पूरे जीवन मे कभी भी झूट नही बोला। आपके जीवन अमानतदारी इस
प्रकार विद्यमान थी कि समस्त मक्कावासी अपनी अमानते आप के पास रखाते थे।
उन्होने कभी भी किसी के साथ विश्वासघात नही किया। जब भी कोई अपनी अमानत
मांगता आप तुरंत वापिस कर देते थे। जो व्यक्ति आपके विरोधि थे वह भी अपनी
अमानते आपके पास रखाते थे। क्योंकि आप के पास एक बड़ी मात्रा मे अमानते
रखी रहती थीं, इस कारण मक्के मे आप का एक नाम अमीन (अमानतदार) पड़ गया
था। आपके सदाचार की अल्लाह ने कुरान में इस प्रकार प्रसंशा की है (अर्थात
पैगम्बर आप अति श्रेष्ठ सदाचारी हैं।)

इस प्रकार इस्लाम के विकास मे एक मूलभूत तत्व मुहम्मद (सल्लल्लाहो
अलैहेवसल्लम) का सद्व्यवहार रहा है। आपकी की पूरी आयु मे कहीं भी यह
दृष्टिगोचर नही होता कि उन्होने अपने समय को व्यर्थ मे व्यतीत किया हो ।
वह समय का बहुत अधिक ध्यान रखते थे। तथा सदैव अल्लाह से दुआ करते थे, कि
ऐ अल्लाह बेकारी, आलस्य व निकृष्टता से बचने के लिए मैं तेरी शरण चाहता
हूँ। वह सदैव मसलमानो को अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करते
थे।अत्याचार के घोर विरोधि थे। उनका मानना था कि अत्याचार के विरूद्ध
लड़ना संसार के समस्त प्राणियों का कर्तव्य है। मनुष्य को अत्याचार के
सम्मुख केवल तमाशाई बनकर नही खड़ा होना चाहिए।

वह कहते थे कि अपने भाई की सहायता करो चाहे वह अत्याचारी ही कयों न हो।
उनके साथियों ने प्रश्न किया कि अत्याचारी की साहयता किस प्रकार करें?
आपने उत्तर दिया कि उसकी सहायता इस प्रकार करो कि उसको अत्याचार करने से
रोक दो।

आपकी एक विशेषता बुराई का बदला भलाई से देना थी। जो उन को यातनाऐं देते
थे, उनकी बुराई के बदले मे इस प्रकार प्रेम पूर्वक व्यवहार करते थे, कि
वह लज्जित हो जाते थे। एक यहूदी जो आपका विरोधी था। वह प्रतिदिन अपने घर
की छत पर बैठ जाता, व जब पैगम्बर उस गली से जाते तो उन के सर पर राख डाल
देता। परन्तु पैगम्बर इससे क्रोधित नही होते थे। तथा एक स्थान पर खड़े
होकर अपने सर व कपड़ों को साफ कर के आगे बढ़ जाते थे। अगले दिन यह जानते
हुए भी कि आज फिर ऐसा ही होगा। वह अपना मार्ग नही बदलते थे। एक दिन जब वह
उस गली से जा रहे थे, तो इनके ऊपर राख नही फेंकी गयी। पैगम्बर रुक गये
तथा प्रश्न किया कि आज वह राख डालने वाला कहाँ हैं? लोगों ने बताया कि आज
वह बीमार है। पैगम्बर ने कहा कि मैं उस को देखने जाऊगां। जब पैगम्बर उस
यहूदी के सम्मुख गये, तथा उससे प्रेम पूर्वक बातें की तो उस व्यक्ति को
ऐसा लगा, कि जैसे यह कई वर्षों से मेरे मित्र हैं। आप के इस व्यवहार से
प्रभावित होकर उसने ऐसा अनुभव किया, कि उस की आत्मा से कायर्ता दूर हो
गयी तथा उस का हृदय पवित्र हो गया। उनके साधारण जीवन तथा नम्र स्वभाव ने
उनके व्यक्तितव मे कमी नही आने दी, उनके लिए प्रत्येक व्यक्ति के हृदय मे
स्थान था।

आपमें दया की प्रबल भावना विद्यमान थी। वह अपने से छोटों के साथ
प्रेमपूर्वक तथा अपने से बड़ो के साथ आदर पूर्वक व्यवहार करते थे । वह
अनाथों व भिखारियों का विशेष ध्यान रखते थे उनको प्रसन्नता प्रदान करते व
अपने यहाँ शरण देते थे।

वह पशुओं पर भी दया करते थे तथा उन को यातना देने से मना करते थे। वह
शत्रु से युद्ध के बजाये सन्धि करने को अधिक महत्व देते थे। आपके हृदय मे
समस्त मानवजाति के प्रति प्रेम था। वह रंग या नस्ल के कारण किसी से भेद
भाव नही करते थे । उनकी दृष्टि मे सभी मनुष्य समान थे। वह कहते थे कि सभी
मनुष्य अल्लाह से जीविका प्राप्त करते हैं। आप सदैव अपने अनुयाईयों को
मानव प्रेम का उपदेश देते थे।

आपने ने मनुष्यों को निम्ण लिखित संदेश दिया
1- मानवता की सफलता का संदेश
2- युद्ध से पूर्व शान्ति वार्ता का संदेश
3- बदले से पहले क्षमा का संदेश
4- दण्ड से पूर्व विन्रमता या क्षमा का संदेश

आपमें क्षमादान की भावना बहुत प्रबल थी।बदले की भावना बिल्कुल भी विद्यमान नही थी।

एक समय आपके अनुयायी उन लोगो को बंदी बना कर ले आये जिन्होंने मक्का में
आपको और आपके साथियो पर बहुत अत्याचार किये थे, तो उन्होने यातनाऐं
देनेवाले सभी शत्रुओं को क्षमा कर दिया। अगर आप चाहते तो उनसे बदला ले
सकते थे परन्तु उन्होने शक्ति होते हुए भी ऐसा नही किया। अपितु सबको
क्षमा करके कहा कि जाओ तुम सब स्वतन्त्र हो।

आप सदैव क्षमादान को वरीयता देते थी। एक बार जब यहूदियों ने भोजन मे विष
मिलाकर आपके के लिए भेजा । आपको उनके इस षड़यन्त्र का ज्ञान हो गया।
परन्तु उन्होने इसके उपरान्त भी यहूदियों को कोई दण्ड नही दिया तथा क्षमा
करके स्वतन्त्र छोड़ दिया। एक बार यात्रा करते हुए कुछ मुनाफिकों के एक
संगठन ने (जो खुद को मुस्लिम कहते थे, लेकिन हकीकत में मुस्लिम नहीं थे)
उन्होंने आपकी हत्या का षड़यन्त्र रचा। जब पैगम्बर एक पहाड़ी दर्रे को
पार कर रहे थे तो मुनाफिक़ीन ने योजनानुसार आप के ऊँट को भड़का दिया।
ताकि आप ऊँट से गिर जाएँ परन्तु वह विफल रहे। और आपने ऐसा करने वालों को
पहचान भी लिया था लेकिन अपने सच्चे साथियों के आग्रह पर भी उन के नाम नही
बताये।

आपका सामाजिक जीवन बहुत श्रेष्ठ था. वह लोगों के मध्य सदैव प्रसन्नचित्त
रहते थे। किसी की ओर घूर कर नही देखते थे। अधिकाँश समय उनकी दृष्टि ज़मीन
पर रहती थी। दूसरों के सामने अपने पैरो कों मोड़ कर बैठते थे। फैला कर या
लम्बे करके नहीं बैठते थे, जब वह किसी सभा मे जाते थे तो अपने बैठने के
लिए निकटतम स्थान को चुनते थे । वह इस बात को पसंद नही करते थे, कि सभा
मे से कोई व्यक्ति उनके आदर हेतू खड़ा हो, या उनके लिए किसी विशेष स्थान
को खाली किया जाये। वह बच्चों तथा दासों को भी स्वंय सलाम करते थे बल्कि
उनके पहले सलाम करने का इंतज़ार नहीं करते थे.

बात करते समय वह किसी के कथन को बीच मे नही काटते थे। वह प्रत्येक
व्यक्ति से इस प्रकार बात करते कि वह यह समझता कि मैं पैगम्बर के सबसे
करीबी लोगन में से हूँ यानी सबसे बहुत प्यार से बात करते थे वह अधिक नही
बोलते थे तथा धीरे-धीरे बाते करते थे। वह कभी भी किसी को अपशब्द नही कहते
थे। वह बहुत अधिक लज्जावान व स्वाभीमानी थे। जब वह किसी के व्यवहार से
दुखि होते तो दुखः के चिन्ह उनके चेहरे से प्रकट होते थे, परन्तु वह अपने
मुख से किसी कोण नहीं गिला नही करते थे।

वह सदैव रोगियों को देखने के लिए जाते तथा मरने वालों के जनाज़ों (अर्थी)
मे सम्मिलित होते थे। वह किसी को इस बात की अनुमति नही देते थे कि उनके
सम्मुख किसी को अपशब्द कहें जायें। आप अपने साथ दुरव्यवहार करने वाले को
क्षमा कर देते थे, परन्तु कानून का उलंघन करने वालों कों क्षमा नही करते
थे। तथा कानूनानुसार उसको दणडित किया जाता था।

वह कहते थे कि कानून व न्याय सामाजिक शांति के रक्षक हैं। अतः ऐसा नही हो
सकता कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए कानून को बलि चढ़ा कर पूरे समाज को
दुषित कर दिया जाये। वह कहते थे कि मैं उस अल्लाह की सौगन्ध खाकर कहता
हूँ जिसके वश मे मेरी जान है कि न्याय के क्षेत्र मे मैं किसी के साथ भी
पक्षपात नही करूगां। अगर मेरा निकटतम सम्बन्धि भी कोई अपराध करेगा तो उसे
क्षमा नही करूगां और न ही उसको बचाने के लिए कानून को बली बनाऊँगा।

एक दिन आपने ने मस्जिद मे अपने प्रवचन मे कहा कि अल्लाह ने कुरआन मे कहा
है कि दुनिया में महा-प्रलय के बाद मे (यानी जब दुनिया ख़तम कर दी जायेगी
और इंसानों को वापस जिंदा किया जाएगा ताकि जिन्होंने दुनिया में अच्छे
काम किये हैं उसका बदला उनको मिल जाए और जिन्होंने बुरे काम किये हैं
उनका बदला उनको मिल जाए तब) कोई भी अत्याचारी अपने अत्याचार के दण्ड से
नही बच सकेगा। अतः अगर आप लोगो मे से किसी को मुझ से कोई यातना पहुंची हो
या किसी का कोई हक़ मेरे ऊपर बाक़ी हो तो वह मुझ से लेले। (वास्तव में
उन्होंने न किसी पर अत्याचार किया था ना ही किसी का हक मार था लेकिन ये
उनका बड़प्पन और अल्लाह से डर था)

जिन विषयों के लिए कुरआन मे आदेश मौजूद होता आप उन विषयों मे न स्वयं
हस्तक्षेप करते और न ही किसी दूसरे को हस्तक्षेप करने देते थे। वह स्वयं
भी उन आदेशों का पालन करते तथा दूसरों को भी पालन करने पर बाध्य करते थे।
क्योकि कुरआन के आदेशों की अवहेलना कुफ्र (अधर्मिता) है। इस सम्बन्ध मे
कुरआन स्वयं कहता है कि (अर्थात वह मनुषय जो अल्लाह के भेजे हुए क़ानून
के अनुसार कार्य नही करते वह समस्त अधर्मी हैं)

आपने एक समय लोगों से कहा की - मै जनता कि भलाई का जनता से अधिक ध्यान
रखता हूँ। तुम लोगों मे से जो भी स्वर्गवासी होगा तथा सम्पत्ति छोड़ कर
जायगा वह सम्पत्ति उसके परिवार की होगी। परन्तु अगर कोई ऋणी होगा या उसका
परिवार दरिद्र होगा तो उसके ऋण को चुकाने तथा उसके परिवार के पालन पोषण
का उत्तरदायित्व मेरे ऊपर होगा।

आपने न्याय व दया पर आधारित अपनी इस शासन प्रणाली द्वारा संसार के समस्त
शासकों को यह शिक्षा दी कि समाज मे शासक की स्थिति एक दयावान व बुद्धिमान
पिता की सी है। शासक को चाहिये कि हर स्थान पर जनता के कल्याण का ध्यान
रखे तथा अपनी मनमानी न करे। आप वह महान् व्यक्ति हैं जिन्होने बहुत कम
समय मे मानव के दिलों मे अपने सद्व्यवहार की अमिट छाप छोड़ी। आपने अपने
सद्व्यवहार, चरित्र व प्रशिक्षण के द्वारा अरब हत्यारों को शान्ति प्रिय,
झूट बोलने वालों को सत्यवादी, निर्दयी लोगों को दयावान, नास्तिकों को
आस्तिक, असभ्यों कों सभ्य, मूर्खों को बुद्धिमान, अज्ञानीयों को ज्ञानी,
तथा क्रूर स्वभव वाले व्यक्तियों को विन्रम बनाया।

आपने अपने जीवन काल १ से ज्यादा शादी की हैं, लेकिन इसके पीछे स्वयं का
हित नहीं था. जिन औरतो से शादी की गई उनमें सभी विधवा थीं और सबकी उम्र
४० के ऊपर थी (यानी जवान औरतें नहीं थी). इन औरतों से शादी करने का
उद्देश्य उनको आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सुरक्षा देना था, कुछ कबीलों से
दुश्मनी ख़तम करने के लिए इसी तरह की औरतों से शादी की गई जिसके बाद उनसे
दुश्मनी दोस्ती में बदल गई. यानी शादियाँ अपने हित के लिए नहीं की गई थी.
बल्कि इसमें दुसरो की ही भलाई छुपी हुई थी.

अच्छा मनुष्य, अच्छा ख़ानदान, अच्छा समाज और अच्छी व्यवस्था-यह ऐसी
चीज़ें हैं जिन्हें हमेशा से, हर इन्सान पसन्द करता आया है क्योंकि
अच्छाई को पसन्द करना मानव-प्रकृति की शाश्वत विशेषता है।

मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम) ने इन्सान, ख़ानदान, समाज और व्यवस्था
को अच्छा और उत्तम बनाने के लिए जीवन भर घोर यत्न भी किए और इस काम में
बाधा डालने वाले कारकों व तत्वों से संघर्ष भी। इस यत्न में उन शिक्षाओं
का बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका और स्थान है जो आपने अपने समय के इन्सानों को,
अपने साथियों व अनुयायियों को तथा उनके माध्यम से भविष्य के इन्सानों को
दीं। ये शिक्षाएं जीवन के हर पहलू, हर क्षेत्र, अर अंग से संबंधित हैं।
ये हज़ारों की संख्या में हैं जिन्हें बहुत ही तवज्जोह, निपुणता, और
सत्यनिष्ठा के साथ एकत्रित, संकलित व संग्रहित करके ‘हदीसशास्त्र’ के रूप
में मानवजाति के उपलब्ध करा दिया गया है। इनमें से कुछ शिक्षाएं
(सार/भावार्थ) यहां प्रस्तुत की जा रही हैं:

● जो व्यक्ति अपने छोटे-छोटे बच्चों के भरण-पोषण के लिए जायज़ कमाई के
लिए दौड़-धूप करता है वह ‘अल्लाह की राह में’ दौड़-धूप करने वाला माना
जाएगा। (लेकिन इस भाग दौड़ में फ़र्ज़ कामों को न छोड़े जेसे नमाज़, रोज़ा आदि)

● घूस (रिश्वत) लेने और देने वाले पर लानत है...कोई क़ौम ऐसी नहीं जिसमें
घूस का प्रचलन हो और उसे भय व आशंकाए घेर न लें।

● सबसे बुरा भोज (बुरी दावत) वह है जिसमें धनवानों को बुलाया जाए और
निर्धनों को छोड़ दिया जाए।

● सबसे बुरा व्यक्ति वह है जो अपनी पत्नी के साथ किए गए गुप्त व्यवहारों
(यौन क्रियाओं) को लोगों से कहता है, राज़ में रखी जाने वाली बातों को
खोलता है।

● यदि तुमने मां-बाप की सेवा की, उन्हें ख़ुश रखा, उनका आज्ञापालन किया
तो स्वर्ग (जन्नत) में जाओगे। उन्हें दुख पहुंचाया, उनका दिल दुखाया,
उन्हें छोड़ दिया तो नरक (जहन्नम) के पात्र बनोगे।

● बाप जन्नत का दरवाज़ा है और मां के पैरों तले जन्नत है (अर्थात्
मां-बाप की सेवा जन्नत-प्राप्ति का साधन बनेगी)

● तुम लोग अपनी सन्तान के साथ दया व प्रेम और सद्व्यवहार से पेश आओ और
उन्हें अच्छी (नैतिक) शिक्षा-दीक्षा दो।

● सन्तान के लिए माता-पिता का श्रेष्ठतम उपहार (तोहफ़ा, Gift) ये है की
उन्हें अच्छी शिक्षा-दीक्षा देना, उच्च शिष्टाचार सिखाना।

● तुममें सबसे अच्छा इन्सान वह है जो अपनी बीवी के साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करे।

● पत्नी के साथ दया व करुणा से पेश आओ तो अच्छा जीवन बीतेगा।

● अल्लाह की अवज्ञा (Disobedience) से बचो। रोज़ी (आय) कमाने का ग़लत
तरीक़ा, ग़लत साधन, ग़लत रास्ता न अपनाओ, क्योंकि कोई व्यक्ति उस वक्त तक
मर नहीं सकता जब तक (उसके भाग्य में लिखी) पूरी रोज़ी उसको मिल न जाए।
हां, उसके मिलने में कुछ देरी या कठिनाई हो सकती है। (तब धैर्य रखो, बुरे
तरीके़ मत अपनाओ) अल्लाह से डरते हुए, उसकी नाफ़रमानी से बचते हुए सही,
जायज़, हलाल तरीके़ अपनाओ और हराम रोज़ी (आय) के क़रीब भी मत जाना।

● वस्त्रहीन (नंगे) होकर मत नहाओ। अल्लाह हया वाला है और अल्लाह के
(अदृश्य) फ़रिश्ते भी (जो हर समय तुम्हारे आसपास रहते हैं) हया करते हैं।

● अत्याचारी, क्रूर और ज़ालिम शासक के सामने हक़ (सच्ची, खरी,
न्यायनिष्ठ) बात कहना (सच्चाई की आवाज़ उठाना) सबसे बड़ा धर्म-युद्ध है।

● धन हो तो ज़रूरतमन्दों को क़र्ज़ दो। वापसी के लिए इतनी मोहलत (समय) दो
कि कर्ज़दार व्यक्ति उसे आसानी से लौटा सके। किसी वास्तविक व अवश्यंभावी
मजबूरी से, समय पर न लौटा सके तो उस पर सख़्ती तथा उसका अपमान मत करो,
उसे और समय दो।

● क़र्ज़ (ऋण) पर ब्याज न लो (ब्याज इस्लाम में हराम है)।

● सामर्थ्य हो जाए, आर्थिक स्थिति अनुकूल हो जाए फिर भी क़र्ज़ वापस
लौटाया न जाए तो यह महापाप है (जिसका दंड परलोक में नरक की यातना व
प्रकोप के रूप में भुगतना पड़ेगा)।

● जो व्यक्ति क़र्ज़ वापस किए बिना (इस कारण कि वह इसका सामर्थ्य नहीं
रखता था) मर गया तो उसकी अदायगी की ज़िम्मेदारी इस्लामी कल्याणकारी राज्य
(उसके शासक) पर है।

● क़र्ज़ देकर एक व्यक्ति किसी ज़रूरतमंद आदमी को चोरी, ब्याज और भीख
मांगने से बचा लेता है।

● मांगने के लिए हाथ मत फैलाओ, यह चेहरे को यशहीन कर देता है (और
आत्म-सम्मान के लिए घातक होता) है। मेहनत-मशक्क़त करो और परिश्रम से
रोज़ी कमाओ। नीचे वाला (भीख लेने वाला) हाथ, ऊपर वाले (भीख देने वाले)
हाथ से तुच्छ, हीन होता है।

मज़दूर की मज़दूरी उसके शरीर का पसीना सूखने से पहले दे दो (अर्थात्
टाल-मटोल, बहाना आदि करके, उसे उसका परिश्रमिक देने में अनुचित देरी मत
करो)।

● सरकारी कर्मचारियों को भेंट-उपहार देना घूस (रिश्वत) है।

● मज़दूर की मज़दूरी तय किए बिना उससे काम न लो।

● अल्लाह कहता है कि परलोक में मैं तीन आदमियों का दुश्मन रहूँगा यानी को
कठिन सजा दी जायेगी । एक: जिसने मेरा नाम लेकर (जैसे-‘अल्लाह की क़सम’
खाकर) किसी से कोई वादा किया, फिर उससे मुकर गया, दो: जिसने किसी आज़ाद
आदमी को बेचकर उसकी क़ीमत खाई; तीन: जिसने मज़दूर से पूरी मेहनत ली और
फिर उसे पूरी मज़दूरी न दी।

● पत्नी के मुंह में हलाल कमाई का कौर (लुक़मा) डालना इबादत है।

● रास्ते में पड़ी कष्टदायक चीज़ें (कांटा, पत्थर, केले का छिलका आदि)
हटा देना (ताकि राहगीरों को तकलीफ़ से बचाया जाए) इबादत है।

● कोई व्यक्ति (मृत्यु-पश्चात) माल छोड़ जाए तो वह माल उसके घर वालों के
लिए है। और किसी (कम उम्र सन्तान, पत्नी, आश्रित माता-पिता आदि) को
बेसहारा छोड़ (कर मर) जाए तो उनका बोझ उठाने की जिम्मदारी मुझ (इस्लामी
सरकार) पर है।

● जिसका भरण-पोषण करने वाला कोई नहीं उस (असहाय, Destitute) के भरण-पोषण
का ज़िम्मेदार राज्य है।

● जिस व्यक्ति ने बाज़ार में कृत्रिम अभाव पैदा करने की नीयत से चालीस
दिन अनाज को भाव चढ़ाने के लिए रोके रखा (जमाख़ोरी Hoarding की) तो ईश्वर
का उससे कोई संबंध नहीं, फिर अगर वह उस अनाज को ख़ैरात (दान) भी कर दे तो
ईश्वर उसे क्षमा नहीं करेगा। उसकी चालीस वर्ष की नमाज़ें भी ईश्वर के
निकट अस्वीकार्य (Unacceptable) हो जाएंगी।

● मुसलमानों में मुफ़लिस (दरिद्र) वास्तव में वह है जो दुनिया से जाने के
बाद (मरणोपरांत) इस अवस्था में, परलोक में ईश्वर की अदालत में पहुंचा कि
उसके पास नमाज़, रोज़ा, हज आदि उपासनाओं के सवाब (पुण्य) का ढेर था।
लेकिन साथ ही वह सांसारिक जीवन में किसी पर लांछन लगाकर, किसी का माल
अवैध रूप से खाकर किसी को अनुचित मारपीट कर, किसी का चरित्रहनन करके,
किसी की हत्या करके आया था। फिर अल्लाह उसकी एक-एक नेकी (पुण्य कार्य का
सवाब) प्रभावित लोगों में बांटता जाएगा, यहां तक उसके पास कुछ सवाब बचा न
रह गया, और इन्साफ़ अभी भी पूरा न हुआ तो प्रभावित लोगों के गुनाह को उस
पर डाले जाएंगे। यहां तक कि बिल्कुल ख़ाली-हाथ (दरिद्र) होकर नरक
(जहन्नम) में डाल दिया जाएगा।

● अल्लाह फ़रमाता है कि बीमार की सेवा करो, भूखे को खाना खिलाओ,
वस्त्रहीन को वस्त्र दो, प्यासे को पानी पिलाओ। ऐसा नहीं करोगे तो मानो
मेरा हाल न पूछा, जबकि मानों मैं स्वयं बीमार था; मानो मुझे कपड़ा नहीं
पहनाया, मानो मैं वस्त्रहीन था, मानो मुझे खाना-पानी नहीं दिया जैसे कि
स्वयं मैं भूखा-प्यासा था।

● किसी परायी स्त्री को (व्यर्थ, अनावश्यक रूप से) मत देखो, सिवाय इसके
कि अनचाहे नज़र पड़ जाए। नज़र हटा लो। पहली निगाह तो तुम्हारी अपनी थी;
इसके बाद की हर निगाह शैतान की निगाह होगी। (अर्थात् शैतान उन बाद वाली
निगाहों के ज़रिए बड़े-बड़े नैतिक व चारित्रिक दोष, बड़ी-बड़ी बुराइयां
उत्पन्न कर देगा।)

● वह औरत (स्वर्ग में जाना तो दूर रहा) स्वर्ग की ख़ुशबू भी नहीं पा सकती
जो लिबास पहनकर भी नंगी रहती है (अर्थात् बहुत चुस्त, पारदर्शी, तंग या
कम व अपर्याप्त (Scanty) लिबास पहनकर, देह प्रदर्शन करती और समाज में
नैतिक मूल्यों के हनन, ह्रास, विघटन तथा अनाचार का साधन व माध्यम बनती
है)।

● दो पराए (ना-महरम) स्त्री-पुरुष जब एकांत में होते हैं तो सिर्फ़ वही
दो नहीं होते बल्कि उनके बीच एक तीसरा भी अवश्य होता है और वह है
‘‘शैतान’’। (अर्थात् शैतान के द्वारा दोनों के बीच अनैतिक संबंध स्थापित
होने की शंका व संभावना बहुत होती है।)

● तुम (ईमान वालों, अर्थात् मुस्लिमों) में सबसे अच्छा व्यक्ति वह है
जिसके स्वभाव (अख़लाक़) सबसे अच्छे हैं।

● वह व्यक्ति (यथार्थ रूप में) मोमिन (अर्थात् ईमान वाला, मुस्लिम) नहीं
है जिसका (कोई ग़रीब पड़ोसी भूखा सो जाए, और इस व्यक्ति को उसकी कोई
चिंता न हो और यह पेट भर खाना खाकर सोए। (चाहे पडोसी किसी भी धर्म को
मानने वाला हो )

● वह व्यक्ति (सच्चा, पूरा, पक्का) मोमिन मुस्लिम नहीं है जिसके उत्पात
और जिसकी शरारतों से उसका पड़ोसी सुरक्षित न हो। (चाहे पडोसी किसी भी
धर्म को मानने वाला हो )

● फल खाकर छिलके मकान के बाहर न डाला करो। हो सकता है आसपास (पड़ोसियों)
के ग़रीब घरों के बच्चे उसे देखकर महरूमी, ग्लानि और अपनी ग़रीबी के
एहसास से दुखी हो उठें। (चाहे पडोसी किसी भी धर्म को मानने वाला हो )

● अपने अधीनों (मातहतों, Subordinates) से, उनको क्षमता, शक्ति से अधिक काम न लो।

● पानी में मलमूत्र मत करो (जल-प्रदूषण उत्पन्न न करो) ज़मीन पर किसी बिल
(सूराख़) में मूत्र मत करो। (इससे कोई हानिकारक कीड़ा, सांप-बिच्छू आदि,
निकल कर तुम्हें हानि पहुंचा सकता है और इससे पर्यावर्णीय संतुलन भी
प्रभावित होगा।)

● अगर तुम कोई पौधा लगा रहे हो और प्रलय आ जाए तब भी पौधे को लगा दो। (इस
शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से वातावर्णीय हित के लिए वृक्षारोपण का
महत्व बताया गया है।)

● पानी का इस्तेमाल एहतियात से करो चाहे जलाशय से ही पानी क्यों न लिया
हो और उसके किनारे बैठे पानी इस्तेमाल कर रहे हो। ज़रूरत से ज़्यादा पानी
व्यय (प्राकृतिक संसाधन का अपव्यय) मत करो (इस शिक्षा में प्रतीकात्मक
रूप से जल-संसाधन अनुरक्षण (Water resource conservation) के महत्व का
भाव निहित है)।

● भोजन के बर्तन में कुछ भी छोड़ो मत। एक-एक दाने में बरकत है। बर्तन को
पूरी तरह साफ़ कर लिया करो। खाद्यान्न/खाद्यपदार्थ का अपव्यय मत करो। (इस
शिक्षा में प्रतीकात्मक रूप से खाद्य-संसाधन-अनुरक्षण (Food resource
conservation) का भाव निहित है।

● किसी पक्षी को (पिजड़े आदि में) क़ैद करके न रखो। (इस शिक्षा में
प्रतीकात्मक रूप से हर जीवधारी के ‘स्वतंत्र रहने’ के मौलिक अधिकार का
महत्व निहित है।)

● किसी पालतू जानवर-विशेषतः जिससे तुम अपना काम लेते हो, जैसे बैल, ऊंट,
गधा, घोड़ा आदि–को भूखा-प्यासा मत रखो, उससे उसकी ताक़त से ज़्यादा काम
मत लो; उसको निर्दयता के साथ मारो मत। याद रखो, आज जितनी शक्ति तुम्हें
उस पर हासिल है, परलोक में (ईश्वरीय अदालत लगने के समय) ईश्वर को तुम पर
उससे अधिक शक्ति होगी।

● दान देने में, दिखावा मत करो कि लोगों में दानी-परोपकारी व्यक्ति के
तौर पर अपनी शोहरत के अभिलाशी रहो। दान मात्र ईश्वर को प्रसन्न करने के
लिए, परलोक में अल्लाह ही से पारितोषिक पाने के लिए दो।)

● जिसे दान दो उस पर एहसान, उपकार मत जताओ, उसे मानसिक दुःख मत पहुंचाओ।

● जिसने किसी ज़िम्मी (इस्लामी शासन में ग़ैर-मुस्लिम बाशिन्दे) की हत्या
की उसके ख़िलाफ़ अल्लाह की अदालत में (परलोक में) ख़ुद मैं मुक़दमा दायर
करूंगा। (विदित हो कि ‘ज़िम्मी’ का अर्थ है वह ग़ैर-मुस्लिम व्यक्ति
जिसके जान-माल की हिफ़ाज़त का ज़िम्मा, उस के मुस्लिम राज्य में रहते
हुए, शासन व इस्लामी शासक पर होता है, ज़िम्मी की हत्या करने वाला
मुसलमान, सज़ा के तौर पर क़त्ल किया जाएगा और अगर, गवाह-सबूत न होने या
किसी और कारण से वह क़त्ल होने से बच भी गया तो हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो
अलैहेवसल्लम परलोक में स्वयं उसके ख़िलाफ़ ईश्वरीय अदालत में दंड के और
ज़िम्मी के हक़ में इन्साफ़ के याचक होंगे।)

● पराई स्त्रियों को दुर्भावना-दृष्टि से मत देखो। आंखों का भी व्यभिचार
होता है और ऐसी दुर्भावनापूर्ण दृष्टि डालनी, आंखों का व्यभिचार (ज़िना)
है। (और यही दृष्टि शारीरिक व्यभिचार/बलात्कार का आरंभ बिन्दु है)।

● जो तुम पर एहसान करे तो उसका एहसान हमेशा याद रखो। किसी पर एहसान करो
तो इसे भूल जाओ (अर्थात उस पर एहसान न जताओ)।

● कोई व्यक्ति किसी चीज़ का सौदा कर रहा हो तो तुम तब तक अपनी कीमत मत
लगाओ जब तक की उसका सौदा ख़तम न हो जाए. (अगर उस व्यक्ति का सौदा तय नहीं
हुआ तब तुम सौदा करो)।

● नमूना (Sample) कुछ दिखाकर, माल किसी और क्वालिटी का मत बेचो।
(यानी अच्छा माल दिखा कर, ख़राब माल मत बेचो)

● रुपये से रुपया मत कमाओ। (यानी ब्याज पर पैसा मत दो) बल्कि रुपये से
कारोबार (Business, Trading) करके रुपया कमाओ। यह ‘मुनाफ़ा’ (Profit,
लाभ) है, और वैध व पसन्दीदा है। (अगर किसी को पैसे की ज़रूरत हो तो उसको
बगेर ब्याज के उधार दे दो)

● कोई व्यक्ति पाप करता है तो उसके दिल में एक काला धब्बा पड़ जाता है।
यदि वह पछताकर, पश्चाताप करते हुए तौबा कर लेता और अल्लाह से माफ़ी मांग
लेता है और संकल्प कर लेता है कि अब उस पाप कर्म को नहीं करेगा, तो वह
धब्बा मिट जाता है। यदि वह ऐसा नहीं करता तो वह बार-बार पाप करेगा और हर
बार दिल के अन्दर का धब्बा फैल कर बड़ा होता जाएगा। अंततः उसका पूरा हृदय
सियाह (काला) हो जाएगा (और पापाचार उसके जीवन का अभाज्य अंग बन जाएगा)।

● झूठी गवाही देना उतना ही बड़ा पाप है जितना शिर्क (अर्थात् ईश्वर के
साथ किसी और को भी शरीक-साझी बना लेने का महा-महापाप)।

● पहलवान वह नहीं है जो कुश्ती में किसी को पछाड़ दे, बल्कि अस्ल पहलवान
वह है जो गु़स्सा आ जाने पर, अपने क्रोध को पछाड़ दे (अर्थात् उस पर
क़ाबू पा ले)।


• Kal ki baat (future ki baat) par hamesha InshaAllah kaha karo
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Jab aisa kahna ho ki mein ye kaam kal kar duga to uske saath hamesha
'inshaAllah' bhi bola karo, jese: InshaAllah, mein ye kaam kal kar
duga.
Koi kaam karne ka irada kia kro To InshaALLAH keh dia kro Taake
Us kaam me Allah ki raza (marzi) shamil ho jae. Ho sakta he jo tum
karna Chah rahe Ho Wo ALLAH ko pasand na ho, aur InshaAllah kahne se
Allah us kaam par raazi ho jaaye. Isliye
InshaALLAH zarur kahe.

ALLAH amal ki tofik de, Aameen


• IMANDAR BUSINESSman KI KEEMAT
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Hazrat Muhammad (sallallahu alyhiwasallam) ne farmaya ki -
Saccha, Amanat Daar BUSINESSMAN Qayamat Ke Din Anmbiya (Prophet),
sachhe or shahido Ke Saath Hoga.

- Tirmizee Shareef

Sach Bol Kar business Karna Bahut bada aur accha kaam He. Aaj Se Aap
Bhi Sach Bol Kar business Karna Shuru Karde. Inshallah Allah Aisi
Barkat Ata Karega Ke Aap Soch Bhi Nahi Sakoge

Allah Hame Amal Ki Taufeeq De
AAMIN SUMMA AAMIN

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